बोल गया कागा मुंडेर पर
शायद घर आयेगा ललना
रोटी रोजी के चक्कर में
देश छोड़ पर देश गया
घर आँगन खलिहान खेत को
'रामभारोसे' सौंप गया
जिससे पूंछो वो ही कहता
सूने खेत गाँव घर अंगना !
जब से गया न चिठिया भेजी
जाने कैसे रहता है?
कब कैसे क्या खाता पीता
किससे सुख दुःख कहता है
आँख फड़क संकेत दे रही
जीवन उसका सुख का झरना !
दिशा दिशा से खबर आ गई
अम्मा मत चिंता करना
ठीक समय से खाना -पीना
बापू का ख्याल रखना
समय समय पर मेघ दूत से
खबर -अतर लेती रहना !
[भोपाल:25.12.07 ]
Sunday, 30 December 2007
Friday, 28 December 2007
किसको करूं प्रणाम?
जब जब पहुंचा गाँव
तब तब ठिठके पाँव
किसको करूँ प्रणाम !
जिस आंगन में खेले कूदे
लुक छिप माटी खाई
चप्पे चप्पे पर उसके भी
घास बेशर्म उग आई
आम नीम की छाँव
लूकाछिपी के दाँव
हो गए सब गुम नाम
दादा दादी अम्मा बापू
संगी साथी खोये
बचा न कोई कुटुम कबीला
मौत गमी में रोये
थके किसी के पाँव
जुड़ जाटा था गाँव
धूल में मिला सुनाम !
बदल गयी सब रीति नीतियां
बदल गयी सब रस्में
अपनों से विश्वास उठ गया
रहा न कोई वश में
कठिन समझना भाव
उल्टी बहती नाँव
ले न कोई सलाम !
[भोपाल:30.9.07 ]
में
तब तब ठिठके पाँव
किसको करूँ प्रणाम !
जिस आंगन में खेले कूदे
लुक छिप माटी खाई
चप्पे चप्पे पर उसके भी
घास बेशर्म उग आई
आम नीम की छाँव
लूकाछिपी के दाँव
हो गए सब गुम नाम
दादा दादी अम्मा बापू
संगी साथी खोये
बचा न कोई कुटुम कबीला
मौत गमी में रोये
थके किसी के पाँव
जुड़ जाटा था गाँव
धूल में मिला सुनाम !
बदल गयी सब रीति नीतियां
बदल गयी सब रस्में
अपनों से विश्वास उठ गया
रहा न कोई वश में
कठिन समझना भाव
उल्टी बहती नाँव
ले न कोई सलाम !
[भोपाल:30.9.07 ]
में
Wednesday, 26 December 2007
घर कब आयोगे?
पसोपेस में पड़े हुए क्यों ?
जाते जाते दे दो जबाव
फिर कब घर आओगे भैया ?
जितने दिन तुम रुके गाँव में
सुख का पारावार बहा
इस तोले से उस तोले तक
अधर अधर पर नाम रहा
सबका है यहं लाब्बेलुबाव
माँग रहे सब एक जबाव
हरी भरी फसलों ने देखा
यादों में बो दिन आया :
तुमने थामी हल की मुठिया
बापू ने खाना खाया
इस पर सबको नाज़ जनाब
पढ़ लिखकर तुम बने नबाब
सब हैं आतुर मिले जबाव
सुबह शाम जब अलाव जलता
तुम आ जाते बातों में
सपनों की बारात निकलती
तुम छा जाते रातों में
चेहरा चेहरा नचे शबाव
हार गले का बने जबाव
फिर कब घर आयोगे भैया ?
[भोपाल:15.12.07]
जाते जाते दे दो जबाव
फिर कब घर आओगे भैया ?
जितने दिन तुम रुके गाँव में
सुख का पारावार बहा
इस तोले से उस तोले तक
अधर अधर पर नाम रहा
सबका है यहं लाब्बेलुबाव
माँग रहे सब एक जबाव
हरी भरी फसलों ने देखा
यादों में बो दिन आया :
तुमने थामी हल की मुठिया
बापू ने खाना खाया
इस पर सबको नाज़ जनाब
पढ़ लिखकर तुम बने नबाब
सब हैं आतुर मिले जबाव
सुबह शाम जब अलाव जलता
तुम आ जाते बातों में
सपनों की बारात निकलती
तुम छा जाते रातों में
चेहरा चेहरा नचे शबाव
हार गले का बने जबाव
फिर कब घर आयोगे भैया ?
[भोपाल:15.12.07]
Saturday, 22 December 2007
गिलहरी
देश रहा परदेश गया
सभी जगह पर मिली गिलहरी
भूले भटके आँगन में जब आई
सूख रहे दानों पर तब ललचाई
पीछे पड़ गए छोरा छोरी घर के
मार मार कर ढेला तुरत भगाई
जान बचाकर पेड़ चड़ी
मन ही मन में दुखी गिलहरी
रामसेतु की जग में धूम मची है
अमिट निशानी बस अवशेष बची है
खून पशीना दिया गिलहरी ने जो
रेखाओं में वो तस्वीर खिची है
युग बीते युग रीतेंगे
याद दिलाती सबको यही गिलहरी
कटते जंगल देख देख रोती है
आंखों की नींद गई ना सोती है
सोच रही मुथरी पड़ जाय कुल्हाड़ी
उज्जवल भविष्य के सपने बोती है
सांस शेष जबतक वन की
नहीं चुकेगी दुनिया कहे गिलहरी
[भोपाल: 1.12। 07]
सभी जगह पर मिली गिलहरी
भूले भटके आँगन में जब आई
सूख रहे दानों पर तब ललचाई
पीछे पड़ गए छोरा छोरी घर के
मार मार कर ढेला तुरत भगाई
जान बचाकर पेड़ चड़ी
मन ही मन में दुखी गिलहरी
रामसेतु की जग में धूम मची है
अमिट निशानी बस अवशेष बची है
खून पशीना दिया गिलहरी ने जो
रेखाओं में वो तस्वीर खिची है
युग बीते युग रीतेंगे
याद दिलाती सबको यही गिलहरी
कटते जंगल देख देख रोती है
आंखों की नींद गई ना सोती है
सोच रही मुथरी पड़ जाय कुल्हाड़ी
उज्जवल भविष्य के सपने बोती है
सांस शेष जबतक वन की
नहीं चुकेगी दुनिया कहे गिलहरी
[भोपाल: 1.12। 07]
Wednesday, 19 December 2007
मेरे मनमीत
आसमान में गूंज रहे जो
सचमुच में मेरे ही गीत
बाग़ -बगीचे रोज बुलाते
चन्दा तारे रोज सुलाते
सपने आ कहते कानों में
जगो पदो ओ मेरे मीत !
जब जब भी आई पुरबाई
लय गति छंद नया लाई
सौंप सौंप सौगात कह गई
होना मत बिल्कुल भयभीत
लिंकन चींटी -सी मनुहारे
सुबह शाम जब राह बुहारें
अंतस में कुलबुली मचा दें
गीत बनें मेरे मनमीत !
[भोपाल:28.11.07]
सचमुच में मेरे ही गीत
बाग़ -बगीचे रोज बुलाते
चन्दा तारे रोज सुलाते
सपने आ कहते कानों में
जगो पदो ओ मेरे मीत !
जब जब भी आई पुरबाई
लय गति छंद नया लाई
सौंप सौंप सौगात कह गई
होना मत बिल्कुल भयभीत
लिंकन चींटी -सी मनुहारे
सुबह शाम जब राह बुहारें
अंतस में कुलबुली मचा दें
गीत बनें मेरे मनमीत !
[भोपाल:28.11.07]
रमुआ की किस्मत
जगर मगर सब ओर दिवाली
रमुआ घर आँगन अन्धिआरी
चकबंदी के चक्कर में
लेनदेन की टक्कर में
सबको खुश ना कर पाया
सबकी खेती होती सिंचित
बस, उसकी ही रहे सियारी
कमरतोड़ महगाई ने
मंहगी हुई पढाई ने
थामा हाथ उधारी का
घर घर वेला सीना ताने
उस घर इमली खडी उघारी
दिन उसके फिरने वाले
दुःख बादल छातानेवाले
पढें लिखे बेटे नौकर
खर्चे कम अब बचत सबाई
सब जग जले देख उजियारी
[भोपाल: 10.11.07]
रमुआ घर आँगन अन्धिआरी
चकबंदी के चक्कर में
लेनदेन की टक्कर में
सबको खुश ना कर पाया
सबकी खेती होती सिंचित
बस, उसकी ही रहे सियारी
कमरतोड़ महगाई ने
मंहगी हुई पढाई ने
थामा हाथ उधारी का
घर घर वेला सीना ताने
उस घर इमली खडी उघारी
दिन उसके फिरने वाले
दुःख बादल छातानेवाले
पढें लिखे बेटे नौकर
खर्चे कम अब बचत सबाई
सब जग जले देख उजियारी
[भोपाल: 10.11.07]
Tuesday, 18 December 2007
कूरा कचरा बीने बचपन
कूरा कचरा बीने बचपन
नहिं ककहरा लिखा भाग में
पते पुराने कपड़े -लत्ते
संगी-साथी सब किस्मत से
सबके सब हैं सूखे पत्ते
सन्नाटे में डूबे गुलशन
छू सकता इनमें से कोई
आसमान के सारे तारे
पी सकता जग का अंधियारा
धर दे दीपक द्वारे -द्वारे
देखभाल से हारे अड़चन
सद्भावों की फसल उगे तो
भामाशाह न चुप बैठेगें
जितने पचड़े और बखादे
ज्ञान्दीप के कर जोरेंगें
क्षार क्षार होगी उलझन
[भोपाल:१२.12.07]
नहिं ककहरा लिखा भाग में
पते पुराने कपड़े -लत्ते
संगी-साथी सब किस्मत से
सबके सब हैं सूखे पत्ते
सन्नाटे में डूबे गुलशन
छू सकता इनमें से कोई
आसमान के सारे तारे
पी सकता जग का अंधियारा
धर दे दीपक द्वारे -द्वारे
देखभाल से हारे अड़चन
सद्भावों की फसल उगे तो
भामाशाह न चुप बैठेगें
जितने पचड़े और बखादे
ज्ञान्दीप के कर जोरेंगें
क्षार क्षार होगी उलझन
[भोपाल:१२.12.07]
Monday, 17 December 2007
अम्मा की चिठिया
अम्मा ने चिठिया भिजबाई
पाँती पाँती झलके कविताई
पते पुराने कपड़े अपने
जब आना तब लेते आना
बिनी चुनी दालें घर का घी
जब जाना, तब लेते जाना
इधर उधर कुछ राहत देगी
कमर तोड़ उछली मंहगाई
जेठ जिठानी दोंनो देवर
लगते हैं बदले बदले
हम दोंनो के हाथ पाँव भी
हार चले चलते चलते
पता नहीं बट्बारा थोपे
कब पर्वत जैसी तन्हाई
नीलू पीलू की तरुणाई
ककडी-सी बढ़ती जाती
तेरी शादी का हरकारा
लाता रोज नयी पाती
जोड़-तोड़ करती जुगाड़ की
घर आँगन गूंजे शहनाई
[भोपाल:13.12.07]
पाँती पाँती झलके कविताई
पते पुराने कपड़े अपने
जब आना तब लेते आना
बिनी चुनी दालें घर का घी
जब जाना, तब लेते जाना
इधर उधर कुछ राहत देगी
कमर तोड़ उछली मंहगाई
जेठ जिठानी दोंनो देवर
लगते हैं बदले बदले
हम दोंनो के हाथ पाँव भी
हार चले चलते चलते
पता नहीं बट्बारा थोपे
कब पर्वत जैसी तन्हाई
नीलू पीलू की तरुणाई
ककडी-सी बढ़ती जाती
तेरी शादी का हरकारा
लाता रोज नयी पाती
जोड़-तोड़ करती जुगाड़ की
घर आँगन गूंजे शहनाई
[भोपाल:13.12.07]
Sunday, 16 December 2007
गीत
बिन नागा के अम्मा बिटिया
गली गली की खाक छानती
पीड़ी दर पीड़ी का करजा
रबर सरीखा बढता जाता
अल सबेरे सुद्खोर का
नया तकाजा आता जाता
पाप- पुण्य पुरखों ने सौंपा
दुनिया उसको भाग मानती
नए साल का छोर न मिलता
नया कलेंडर घर में आता
किस्मत खोटी है kutiaa कुतिय की
घर आँगन छोटा पड़ जाता
भिनर भिनर मक्खी से भिन्कें
फिर भी कोख न हार मानती
बापू रोज़न्दारी करता
छूंछे हाथ शाम घर आता
होश- हवास न उसको रहता
सारा घर भूखा सो जाता
कौन गली कूंचे में कचरा
धनियाँ सुखिया रह जानती
चोरी करता कोई बचपन
कोई हाथ पसारे फिरता
बिना मौत कोई मर जाता
हाथ पे हाथ धरे घरे रहता
मर-मर कर परिवार जी रहा
कचरा इन्कम पेट पालती
गली गली की खाक छानती
पीड़ी दर पीड़ी का करजा
रबर सरीखा बढता जाता
अल सबेरे सुद्खोर का
नया तकाजा आता जाता
पाप- पुण्य पुरखों ने सौंपा
दुनिया उसको भाग मानती
नए साल का छोर न मिलता
नया कलेंडर घर में आता
किस्मत खोटी है kutiaa कुतिय की
घर आँगन छोटा पड़ जाता
भिनर भिनर मक्खी से भिन्कें
फिर भी कोख न हार मानती
बापू रोज़न्दारी करता
छूंछे हाथ शाम घर आता
होश- हवास न उसको रहता
सारा घर भूखा सो जाता
कौन गली कूंचे में कचरा
धनियाँ सुखिया रह जानती
चोरी करता कोई बचपन
कोई हाथ पसारे फिरता
बिना मौत कोई मर जाता
हाथ पे हाथ धरे घरे रहता
मर-मर कर परिवार जी रहा
कचरा इन्कम पेट पालती
गली गली की खाक छानती
बिन नागा के अम्मा बिटिया
गली गली की खाक छानती
पीड़ी दर पीड़ी का करजा
रबर सरीखा बढता जाता
अल सबेरे सुद्खोर कानया
तकाजा आता जाता
पाप-पुण्य पुरखों ने सौंपा
दुनिया उसको भाग मानती
नए साल का छोर न मिलता
नया कलेंडर घर में आता
किस्मत खोटी है कुटया की
घर आँगन छोटा पड़ जाता
भिनर भिनर मक्खी से भिन्कें
फिर भी कोख न हार मानती
बापू रोज़न्दारी करता
छूंछे हाथ शाम घर आता
होश- हवास न उसको रहता
सारा घर भूखा सो जाता
कौन गली कूंचे में कचरा
धनियाँ सुखिया राह जानती
चोरी करता कोई बचपन
कोई हाथ पसारे फिरता
बिना मौत कोई मर जाता
हाथ पे हाथ धरे घरे रहता
मर-मर कर परिवार जी रहा
कचरा इन्कम पेट पालती
गली गली की खाक छानती
पीड़ी दर पीड़ी का करजा
रबर सरीखा बढता जाता
अल सबेरे सुद्खोर कानया
तकाजा आता जाता
पाप-पुण्य पुरखों ने सौंपा
दुनिया उसको भाग मानती
नए साल का छोर न मिलता
नया कलेंडर घर में आता
किस्मत खोटी है कुटया की
घर आँगन छोटा पड़ जाता
भिनर भिनर मक्खी से भिन्कें
फिर भी कोख न हार मानती
बापू रोज़न्दारी करता
छूंछे हाथ शाम घर आता
होश- हवास न उसको रहता
सारा घर भूखा सो जाता
कौन गली कूंचे में कचरा
धनियाँ सुखिया राह जानती
चोरी करता कोई बचपन
कोई हाथ पसारे फिरता
बिना मौत कोई मर जाता
हाथ पे हाथ धरे घरे रहता
मर-मर कर परिवार जी रहा
कचरा इन्कम पेट पालती
Wednesday, 12 December 2007
स्वागत
सीमा ने पाव छुए ज्योंही
स्वागत स्वागत पडा सुनाई
खेत और खलिहान लड़ पड़े
छोड़-छाड सब काम चल पड़े
हंस -हंस जय जय राम किया
एक -एक असबाब लिया
बतिआने की झड़ी लगाई
हम सबको क्या भूल गए थे ?
चिठिया लिखना चूक गए थे ?
दिन कोई ऐसा ना जाता
जिकर तुम्हारा , नाम ना आता
अधर अधर पर कसम दुहाई
जाने से पहिले घर आना
अम्मा -भौजी से मिल जाना
कुछ सुनना कुछ गीत सुनाना
फूले फले न कभी उलाना
तुमने उनसे आख चुराई
[भोपाल:११.१२.०७ ]
स्वागत स्वागत पडा सुनाई
खेत और खलिहान लड़ पड़े
छोड़-छाड सब काम चल पड़े
हंस -हंस जय जय राम किया
एक -एक असबाब लिया
बतिआने की झड़ी लगाई
हम सबको क्या भूल गए थे ?
चिठिया लिखना चूक गए थे ?
दिन कोई ऐसा ना जाता
जिकर तुम्हारा , नाम ना आता
अधर अधर पर कसम दुहाई
जाने से पहिले घर आना
अम्मा -भौजी से मिल जाना
कुछ सुनना कुछ गीत सुनाना
फूले फले न कभी उलाना
तुमने उनसे आख चुराई
[भोपाल:११.१२.०७ ]
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