जब जब पहुंचा गाँव
तब तब ठिठके पाँव
किसको करूँ प्रणाम !
जिस आंगन में खेले कूदे
लुक छिप माटी खाई
चप्पे चप्पे पर उसके भी
घास बेशर्म उग आई
आम नीम की छाँव
लूकाछिपी के दाँव
हो गए सब गुम नाम
दादा दादी अम्मा बापू
संगी साथी खोये
बचा न कोई कुटुम कबीला
मौत गमी में रोये
थके किसी के पाँव
जुड़ जाटा था गाँव
धूल में मिला सुनाम !
बदल गयी सब रीति नीतियां
बदल गयी सब रस्में
अपनों से विश्वास उठ गया
रहा न कोई वश में
कठिन समझना भाव
उल्टी बहती नाँव
ले न कोई सलाम !
[भोपाल:30.9.07 ]
में
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