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Wednesday, 19 December 2007

मेरे मनमीत

आसमान में गूंज रहे जो
सचमुच में मेरे ही गीत
बाग़ -बगीचे रोज बुलाते
चन्दा तारे रोज सुलाते
सपने आ कहते कानों में

जगो पदो ओ मेरे मीत !
जब जब भी आई पुरबाई
लय गति छंद नया लाई
सौंप सौंप सौगात कह गई
होना मत बिल्कुल भयभीत
लिंकन चींटी -सी मनुहारे
सुबह शाम जब राह बुहारें
अंतस में कुलबुली मचा दें
गीत बनें मेरे मनमीत !
[भोपाल:28.11.07]

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