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Sunday, 16 December 2007

गली गली की खाक छानती

बिन नागा के अम्मा बिटिया
गली गली की खाक छानती

पीड़ी दर पीड़ी का करजा
रबर सरीखा बढता जाता
अल सबेरे सुद्खोर कानया
तकाजा आता जाता

पाप-पुण्य पुरखों ने सौंपा
दुनिया उसको भाग मानती

नए साल का छोर न मिलता
नया कलेंडर घर में आता
किस्मत खोटी है कुटया की
घर आँगन छोटा पड़ जाता

भिनर भिनर मक्खी से भिन्कें
फिर भी कोख न हार मानती

बापू रोज़न्दारी करता
छूंछे हाथ शाम घर आता
होश- हवास न उसको रहता
सारा घर भूखा सो जाता

कौन गली कूंचे में कचरा
धनियाँ सुखिया राह जानती

चोरी करता कोई बचपन
कोई हाथ पसारे फिरता
बिना मौत कोई मर जाता
हाथ पे हाथ धरे घरे रहता

मर-मर कर परिवार जी रहा
कचरा इन्कम पेट पालती

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