जगर मगर सब ओर दिवाली
रमुआ घर आँगन अन्धिआरी
चकबंदी के चक्कर में
लेनदेन की टक्कर में
सबको खुश ना कर पाया
सबकी खेती होती सिंचित
बस, उसकी ही रहे सियारी
कमरतोड़ महगाई ने
मंहगी हुई पढाई ने
थामा हाथ उधारी का
घर घर वेला सीना ताने
उस घर इमली खडी उघारी
दिन उसके फिरने वाले
दुःख बादल छातानेवाले
पढें लिखे बेटे नौकर
खर्चे कम अब बचत सबाई
सब जग जले देख उजियारी
[भोपाल: 10.11.07]
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