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Wednesday, 26 December 2007

घर कब आयोगे?

पसोपेस में पड़े हुए क्यों ?
जाते जाते दे दो जबाव
फिर कब घर आओगे भैया ?
जितने दिन तुम रुके गाँव में
सुख का पारावार बहा
इस तोले से उस तोले तक
अधर अधर पर नाम रहा
सबका है यहं लाब्बेलुबाव
माँग रहे सब एक जबाव
हरी भरी फसलों ने देखा
यादों में बो दिन आया :
तुमने थामी हल की मुठिया
बापू ने खाना खाया
इस पर सबको नाज़ जनाब
पढ़ लिखकर तुम बने नबाब
सब हैं आतुर मिले जबाव
सुबह शाम जब अलाव जलता
तुम आ जाते बातों में
सपनों की बारात निकलती
तुम छा जाते रातों में
चेहरा चेहरा नचे शबाव
हार गले का बने जबाव
फिर कब घर आयोगे भैया ?
[भोपाल:15.12.07]

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