अम्मा ने चिठिया भिजबाई
पाँती पाँती झलके कविताई
पते पुराने कपड़े अपने
जब आना तब लेते आना
बिनी चुनी दालें घर का घी
जब जाना, तब लेते जाना
इधर उधर कुछ राहत देगी
कमर तोड़ उछली मंहगाई
जेठ जिठानी दोंनो देवर
लगते हैं बदले बदले
हम दोंनो के हाथ पाँव भी
हार चले चलते चलते
पता नहीं बट्बारा थोपे
कब पर्वत जैसी तन्हाई
नीलू पीलू की तरुणाई
ककडी-सी बढ़ती जाती
तेरी शादी का हरकारा
लाता रोज नयी पाती
जोड़-तोड़ करती जुगाड़ की
घर आँगन गूंजे शहनाई
[भोपाल:13.12.07]
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