सभी जगह पर मिली गिलहरी
भूले भटके आँगन में जब आई
सूख रहे दानों पर तब ललचाई
पीछे पड़ गए छोरा छोरी घर के
मार मार कर ढेला तुरत भगाई
जान बचाकर पेड़ चड़ी
मन ही मन में दुखी गिलहरी
रामसेतु की जग में धूम मची है
अमिट निशानी बस अवशेष बची है
खून पशीना दिया गिलहरी ने जो
रेखाओं में वो तस्वीर खिची है
युग बीते युग रीतेंगे
याद दिलाती सबको यही गिलहरी
कटते जंगल देख देख रोती है
आंखों की नींद गई ना सोती है
सोच रही मुथरी पड़ जाय कुल्हाड़ी
उज्जवल भविष्य के सपने बोती है
सांस शेष जबतक वन की
नहीं चुकेगी दुनिया कहे गिलहरी
[भोपाल: 1.12। 07]
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