Welcome!

Thursday, 31 July 2008

अम्मा की पहचान !

सबसे पहले खाट छोड़ना
सबसे पीछे सोने जाना
अम्मा की पहचान !

हँसी खुशी त्यौहार मनाना
महमानों का आना जाना
कब किसको क्या लेना देना
घर ग्रहस्थी की गाड़ी खेना
गेहूँ दालेंपिसना चुनना
कब किसको क्या कपड़ा सिलना
अम्मा को अनुमान !

हार खेत का हिसाब रखना
खाद बीज की किताब रखना
लाभ हानि की चिंता करना
बापू के संग जीना मरना
कौन बीज किस खेत उगेगा
कौन कहाँ या नगद मिलेगा
अम्मा को है ज्ञान !

कौडी कौड़ी हिसाब रखना
खर्च बचत का जबाब रखना
जिसको चहिये उसको देना
बापू की चिंता सर लेना
अफरा -तफरा राज़ बताना
नासमझों को राह सुझाना
अम्मा वेद पुराण !
[भोपाल:१५.०१.०८]

स्वागत -बिदाई

सीमा ने पॉव छुए ज्यों ही
स्वागत स्वागत पडा सुनाई

खेत और खलिहान लड़ पड़े
छोड़ -छाड़ सब काम चल पड़े
हंस हंस "जय जय राम "किया
एक एक असबाब लिया
बतियाने की झडी लगाई

हम सबको क्या भूल गये थे
चिठिया लिखना चूक गये थे
दिन कोई ऐसा ना जाता
जिक्र तुम्हारा नाम ना आता
अधर अधर पर राम दुहाई

जाने से पहले घर आना
अम्मा भौजी से मिल जाना
कुछ कहना कुछ उनकी सुनना
फूले फले न कभी उलहना
लेना उनसे तभी बिदाई
[भोपाल:११.१२.०७]

Wednesday, 30 July 2008

विदाई

आने जाने वाले पूँछें
किसकी यह हो रही बिदाई

जब लल्लू छुट्टी घर आया
खुशियाँ झोली भर भर आया
लाया सबके लिए निशानी
जिसने जो माँगा दिलबाया
कौडी कौडी लल्लू खर्चे
जोड़ जाड़ जो रखी कमाई

नाते रिश्ते में जब घूमा
सबने लाड प्यार से चूमा
जिनसे से खेली आंख मिचौली
मेला आगे पीछे घूमा
कैसे कैसे पापड़ बेले
बात बात में कथा सुनाई

पता न चला छुट्टियां बीतीं
बतियाने में रातें बीतीं
सकल गाँव दे रहा बिदाई
चारों ओर उदासी छाई
अम्माकी न थमे रुलाई
[भोपाल:०५.१०.०७]

जब मै पहुंचा गाव

जब मै पहुंचा गाव सभी ने
हाथों हाथ लिया

नीम आम गदगदहो बोले
सुस्ता लो शीतल छैयाँ
पीपल बिजना लगा डुलाने
लगीं रभाने बछिया गैयाँ
कुआँ बावड़ी ने भर लोटा
दोनों हाथ दिया

इकलौता लल्लू घर आया
कानों कान खबर फ़ैली
उमड़ पडा सब गाव मिलन को
भर भर खुशियों की थैली
नाच उठा अम्मा बापू का
ठंडा हुआ हिया

जब तक रहा गाँव में आया
घर घर से भीना न्यौता
सोने से पहले माँ कहती
भरा कटोरा दो रीता
खबर सुनी जब से जाने की
रो रो दिया जिया
[भोपाल:०३.१०.०७]

सपना

सुनो -सुनो जी मेरा सपना
जब जन्मूँ तब बिटिया बनना

स्रष्टि -स्रजन में ब्रहम्माजी को
पहले सुधि मेरी ही आई
अंग अंग के रंग रोगन में
अपनी पूरी अक्ल लगाई
ऋषि मुनि ज्ञानी सबका कहना

जादू भरी पिटारी रचना
आधी दुनिया की आबादी
मेरे खाते का हिस्सा
मेर बिना हुआ न पूरा
दुनिया का कोई भी किस्सा
परहित में जीवन भर जलना
मेरा जीवन जैसे झरना

भूतकाल औ 'वर्तमान में
उपहारों की लम्बी सूची
रही कुतरती गलतफहमियाँ
ले करके हाथों में कैंची
रहा अधूरा कभी न सपना
है भविष्य अपना ही अपना
[भोपाल:१३.०९.२००७]

Monday, 28 July 2008

घर अपना

सुधियों में आता घर अपना
रोजी रोटी की तलाश ने

दर-दरवाजा नेह तुडाया
घिसे -पिटे जूतों के तल्ले
छत-छप्पर तब मिल पाया
उचट उचट जब जाए जब निदिया
आंखों में तिरता घर अपना

साँझ ढले पहुँचूँ जब कुटिया
गैया- बछरा नजर न आते
स्वागत करने की आतुरता
रँभा- रँभाकर सर न हिलाते
चारा -सानी -सार सिसकते
दिनरात सिसकता घर अपना

घर आँगन खलिहान खेत में
दिन दिनभर बापू का खपना
चौका -चुल्हा घर आँगन में
चुपके चुपके माँ का गलना
घोर अँधेरा डगर न सूझे
बन दीपक जलता घर अपना
[भोपाल:२८.०७ ०८]

Tuesday, 22 July 2008

सुबह सुबह

सुबह सुबह का सुखद नज़ारा

सुबह सबेरे सूरज निकले
हो जैसे फुटबाल
सारा आसमान रँग जाए
लाल लाल ,बस, लाल
सब जग का भागे अंधियारा

कोयल मैना सारे पंछी
छोड़ चले सब नीड़
आसमान में पडी दिखाई
पंख पसारे भीड़
मंजिल का दूर किनारा

क्यारी क्यारी में आ उतरी
किरणें पाव पसार
लाल टमाटर हरी मिर्च में
उमडा नया जुवार
खुशियों का खुला पिटारा

लाल गुलाब हरी डूब पर
उतरा नया खुमार
रंग बिरंगे फूल फूल पर
किरणें हुईं सवार
करते मोहन किशन इशारा
[भरूच :नीरजा :११.०६.०८]

जनम मरण त्यौहार

साँस साँस विश्वास पला
खाँस खाँस उपहास मिला है

जिसने जितना ही सुख चाहा
फाँसफाँस दुःख दर्द मिला है
ज्ञानी ध्यानी सब जग कहता
दुःख सुख जीवन सार मिला है

सर सरिता उपवन उपवन में
प्राणी की धड़कन धड़कन में
जीवन का संदेश मचलता
अंजन आंजरहा अंखियन में
दशों दिशाओं का मन कहता
हँसी खुसी का तार है

कितना भी कुछ कर ले कोई
राजा रंक बचा न कोई
जनम मरण ज्यों भोर सांझ -सा
अंत समय सब दुनिया रोई
पंक्ति पंक्ति कबिरा की कहती
जनम मरण त्यौहार है
[भोपाल:०३.०४ ०८]

Saturday, 19 July 2008

मधुर मधुर मुस्कान

शिशु की मधुर मधुर मुस्कान

छोड़ छाड़ सब काम हाथ के
गोद में उसे उठाये
जो सुख जसुदा माँ ने लूटा
झोली में न समाये
शिशु पर देती पूरा ध्यान

गेंद समझकर उसे उछाले
फूटे हसीं फुआरा
प्रसव वेदना की पीड़ा का
भूल जाय दुःख सारा
'कानावाती 'कू-कू कान

चुम्मी गाल गाल पर जड़कर
ढेर वलैयाँ लेती
मचे गुदगुदी जब आँचल में
पल्लू से ढक लेती
मेरा जीवन धन्य महान
[भोपाल:१६.०७.०८]

वो घर

सचमुच वो घर भूँलू कैसे
भूली बिसुरी याद छिपाए
जिस घर का कोना -कोना
असमय आँख मिचीं अम्मा की
फूट-फूट कर रोना -धोना
दुःख विसराया जैसे तैसे

जब जब जैसी हुई जरूरत
सोच समझकर नकशा खीचा
सबने मिलजुल घर आँगन को
खून पसीने से फ़िर सींचा
जुट जाते थे ऐसे -पैसे

चौपाल चौतरा के बाजू में
सीना ताने नीम खडा है
हर मौसम सेवा करने को
पांव अंगदी जमा अड़ा है
रोग न झाँके ऐसे वैसे
[भोपाल: १५०७ .०८]

Monday, 14 July 2008

पुश्तैनी घर

पुरखों का घर एक बट गया हिस्सों में

घर के मुखिया दादा -दादी
सबकी चिंता दादा -दादी
चूल्हा-चौका सबका एक
सबके पीछे दादा -दादी
कभी किसी का कौर बटा न किश्तों में

सब ओर घना अनुशासन था
आँख इशारा शीर्षासन था
सबका दुःख दादा -दादी की
अंतर्पीदा का कारण था
कभी किसी का दुःख न बधां था बस्तों में

मिंची आख दादा -दादी की
बही हवा शक -संदेहों की
जितने मुंह उतने ही चूल्हे
मिती साख दीवारों की
पुश्तेनी घर शेष रहा अब किस्सों में
[भोपाल:०७.०७.०८]

Thursday, 3 July 2008

मेरी घर बखरी

सोच समझ मिलजुल पुरखों ने
जिसकी नींव धरी
हर ऋतु में सौगात परोसे
मेरी घर बखरी

कहाँ कहाँ क्या क्या होना है
चौपाल चौतरा चूल्हा -चौका
कहाँ सहेजे घूरा ईंधन
मन्दिर के ढिग तुलसी चौरा
सब हाथों ने दिया सहारा
छत -छाया निखरी

सौपें रातों ने जो सपनें
दिवसों ने साकार कर दिए
उनचास पवन तूफानों में भी
हंसती नंदन नगरी

पीढी दर पीढी को जिसने
कुलपूजा त्यौहार परोसे
नाम-काम इतिहास रच गए
शिलालेख पर टिके भरोसे
आस-पास जनगण गीतों में
यश -गाथा बिखरी
[भोपाल;०२.०७.०८]

Wednesday, 2 July 2008

जसुदा मैया

आओ तुम्हें बताता हूँ मै
कैसी जसुदा मेरी मैया

तन माटी का दिया सजाती
मन की बाटी रोज़ जलाती
तं की थाती जहां जहां पर
नागा बिना दिया धर आती
रात अमावस अधिनारी में
शरद जुनैया मेरी मैया

मां का अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने
पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने
चलती फिरती तुलसी विरचित
रामायण -सी मेरी मैया

कभी खुरदरे शब्द न आए
अधरों पर ,हाँ,भूले भटके
शब्द शब्द कविता बनते थे
लगते हरदम टटके टटके
नवल धवल वसनों में लगती
हंस गामिनी मेरी मैया
[भोपाल:१५.०८.०७]

कामधेनु

मलयानिल कानों में कहती
मेरी अम्मा सोनचिरैया
खात पकड़ते ही अम्मा के
सारा घर गम पीता
जैसे सूरज के ढलते ही
सारा जग तं जीता
अम्मा चलती घर चलता था
घर कश्ती की कुशल खिवैया
बात बतंगड़ जब बनती हो
कैसे दफना देना
सैनन नैनन सब समझाना
क्या है लेना- देना
जो मांगो सो वो देती थी
कामधेनु की वंशज मैया
सम्बन्धों की कुशल चितेरी
पग-पग उन्हें निभाया
जद जमीन तनमन से सिंची
माथे से सदा लगाया
परम्परा की सिरजन हारी
ढल जाती थी झटपट मैया
[०७.०८.०७]