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Thursday, 3 July 2008

मेरी घर बखरी

सोच समझ मिलजुल पुरखों ने
जिसकी नींव धरी
हर ऋतु में सौगात परोसे
मेरी घर बखरी

कहाँ कहाँ क्या क्या होना है
चौपाल चौतरा चूल्हा -चौका
कहाँ सहेजे घूरा ईंधन
मन्दिर के ढिग तुलसी चौरा
सब हाथों ने दिया सहारा
छत -छाया निखरी

सौपें रातों ने जो सपनें
दिवसों ने साकार कर दिए
उनचास पवन तूफानों में भी
हंसती नंदन नगरी

पीढी दर पीढी को जिसने
कुलपूजा त्यौहार परोसे
नाम-काम इतिहास रच गए
शिलालेख पर टिके भरोसे
आस-पास जनगण गीतों में
यश -गाथा बिखरी
[भोपाल;०२.०७.०८]

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