सुनो -सुनो जी मेरा सपना
जब जन्मूँ तब बिटिया बनना
स्रष्टि -स्रजन में ब्रहम्माजी को
पहले सुधि मेरी ही आई
अंग अंग के रंग रोगन में
अपनी पूरी अक्ल लगाई
ऋषि मुनि ज्ञानी सबका कहना
जादू भरी पिटारी रचना
आधी दुनिया की आबादी
मेरे खाते का हिस्सा
मेर बिना हुआ न पूरा
दुनिया का कोई भी किस्सा
परहित में जीवन भर जलना
मेरा जीवन जैसे झरना
भूतकाल औ 'वर्तमान में
उपहारों की लम्बी सूची
रही कुतरती गलतफहमियाँ
ले करके हाथों में कैंची
रहा अधूरा कभी न सपना
है भविष्य अपना ही अपना
[भोपाल:१३.०९.२००७]
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