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Monday, 14 July 2008

पुश्तैनी घर

पुरखों का घर एक बट गया हिस्सों में

घर के मुखिया दादा -दादी
सबकी चिंता दादा -दादी
चूल्हा-चौका सबका एक
सबके पीछे दादा -दादी
कभी किसी का कौर बटा न किश्तों में

सब ओर घना अनुशासन था
आँख इशारा शीर्षासन था
सबका दुःख दादा -दादी की
अंतर्पीदा का कारण था
कभी किसी का दुःख न बधां था बस्तों में

मिंची आख दादा -दादी की
बही हवा शक -संदेहों की
जितने मुंह उतने ही चूल्हे
मिती साख दीवारों की
पुश्तेनी घर शेष रहा अब किस्सों में
[भोपाल:०७.०७.०८]

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