मलयानिल कानों में कहती
मेरी अम्मा सोनचिरैया
खात पकड़ते ही अम्मा के
सारा घर गम पीता
जैसे सूरज के ढलते ही
सारा जग तं जीता
अम्मा चलती घर चलता था
घर कश्ती की कुशल खिवैया
बात बतंगड़ जब बनती हो
कैसे दफना देना
सैनन नैनन सब समझाना
क्या है लेना- देना
जो मांगो सो वो देती थी
कामधेनु की वंशज मैया
सम्बन्धों की कुशल चितेरी
पग-पग उन्हें निभाया
जद जमीन तनमन से सिंची
माथे से सदा लगाया
परम्परा की सिरजन हारी
ढल जाती थी झटपट मैया
[०७.०८.०७]
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