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Saturday, 19 July 2008

वो घर

सचमुच वो घर भूँलू कैसे
भूली बिसुरी याद छिपाए
जिस घर का कोना -कोना
असमय आँख मिचीं अम्मा की
फूट-फूट कर रोना -धोना
दुःख विसराया जैसे तैसे

जब जब जैसी हुई जरूरत
सोच समझकर नकशा खीचा
सबने मिलजुल घर आँगन को
खून पसीने से फ़िर सींचा
जुट जाते थे ऐसे -पैसे

चौपाल चौतरा के बाजू में
सीना ताने नीम खडा है
हर मौसम सेवा करने को
पांव अंगदी जमा अड़ा है
रोग न झाँके ऐसे वैसे
[भोपाल: १५०७ .०८]

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया लिखा है।


सीना ताने नीम खडा है
हर मौसम सेवा करने को
पांव अंगदी जमा अड़ा है
रोग न झाँके ऐसे वैसे

Jaijairam anand said...

aapne jo protsaahn diyaa bahut bahut dhanywad
DR Anand