सचमुच वो घर भूँलू कैसे
भूली बिसुरी याद छिपाए
जिस घर का कोना -कोना
असमय आँख मिचीं अम्मा की
फूट-फूट कर रोना -धोना
दुःख विसराया जैसे तैसे
जब जब जैसी हुई जरूरत
सोच समझकर नकशा खीचा
सबने मिलजुल घर आँगन को
खून पसीने से फ़िर सींचा
जुट जाते थे ऐसे -पैसे
चौपाल चौतरा के बाजू में
सीना ताने नीम खडा है
हर मौसम सेवा करने को
पांव अंगदी जमा अड़ा है
रोग न झाँके ऐसे वैसे
[भोपाल: १५०७ .०८]
2 comments:
बहुत बढिया लिखा है।
सीना ताने नीम खडा है
हर मौसम सेवा करने को
पांव अंगदी जमा अड़ा है
रोग न झाँके ऐसे वैसे
aapne jo protsaahn diyaa bahut bahut dhanywad
DR Anand
Post a Comment