साँस साँस विश्वास पला
खाँस खाँस उपहास मिला है
जिसने जितना ही सुख चाहा
फाँसफाँस दुःख दर्द मिला है
ज्ञानी ध्यानी सब जग कहता
दुःख सुख जीवन सार मिला है
सर सरिता उपवन उपवन में
प्राणी की धड़कन धड़कन में
जीवन का संदेश मचलता
अंजन आंजरहा अंखियन में
दशों दिशाओं का मन कहता
हँसी खुसी का तार है
कितना भी कुछ कर ले कोई
राजा रंक बचा न कोई
जनम मरण ज्यों भोर सांझ -सा
अंत समय सब दुनिया रोई
पंक्ति पंक्ति कबिरा की कहती
जनम मरण त्यौहार है
[भोपाल:०३.०४ ०८]
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