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Saturday, 29 March 2008

रंगो का त्यौहार

टेसू रंग उलीचता रंगों का त्यौहार


दोनों हाथ बटोरिये खुशियों का उपहार


झरने सी झरती व्यावहार व्यावहार व्यावहार व्यावहार


अधर अधर नचती हंसी


चुभती फांस निकाल दो


मन में बरसों से बसी

दुश्मन को भी देख लो बदल जाय व्यवहार

महा गंध बिखेरता

टेसू रंग उलीचता

वन उपवन रंग में रंगा

पल पल रंग उदेलता

डाल डाल हर फूल का नाच उठा श्रृंगार

जन गन भरा उमंग से

पिचकारी ने भंग पी

खेले भंग तरंग से

बरसाने रंग में रंगा जन जीवन संसार

लो देखो अब आ गया रंगो का त्यौहार

[भोपाल :२२. 03.०८ ]























मन बिखेरता टेसूरंग लो उश्मन का शमन देख लो बरसों से बसी

Friday, 28 March 2008

नई दिशा

नये वर्ष के नव विहान मेँ

रहना पड़े dur

Thursday, 27 March 2008

उदघोशना

गोरे गोरे हाथ पाँव मेँमेंहदी मोहि न रचना ammaa
जनम जनम जन्मान्तर मेँ भी बिटिया मोहि न बनना
अम्मा बापू का प्यार जगा
मेरे जीवन का बीज उगा
जंगल मेँ जैसे आग लगी
परिजन मन मेँ विस्वास जगा
इसकी उसकी जांच परख का मोहरा मोहि न बनना
जैसे ही मैं हुई सयानी
घर बाहर की बनी कहानी
कानाफूसीँ शुरू हो गई
आंखों की किरकिरी जवानी
अस्मत अपनी लुटा लुटा कर मोहि न आग मेँ जलना
चूल्हा चौका पिंड न छोड़े
आफिस मेँ भी खाता खोले
छोटे बड़े सभी का मनुआ
मेरे आगे पीछे डोले
घर baahr
[बुरहान्पुर से छनेरा रेल यात्रा : 26.08. 2007]

Tuesday, 25 March 2008

बुधिया की जीवन थाती

तौर तरीके गंवई-गाँव के
बुधिया की जीवन थाती
मुट्ठी भर कंकाली तन में
जाने कितनी ऊर्जा
मजदूरी के बलबूते पर
चुका दिया सब कर्जा
हंसी खुशी की सब परिजन को
समय समय पर लिखती पाती
तीज और त्योहारों की जब
खुशियाँ मागे खर्चा
इतना जोड़ जोड़ रख लेती
घर घर होती चर्चा
आस पास नाते रिश्तों में
सबको परसा पहुंचाती
कहों कहों खलिहान खेत हैं
करना कहों बुबाई
कहों खाद पानी देना है
करना कहों नुनाई
जिनके घर हल बैल नहीं
उनको भी न्याय दिलाती
[बुरहानपुर से छनेरा :रेल यात्रा : 05 09 .09]

Monday, 24 March 2008

अपना गीत समझना

पथ में आकर जब शूलों ने
अपना राग अलापा
दुःख दर्दों ने बिना झिझक के
लूटा खूब मुनाफा
तुमने आकर कहा कान में
जब जब हारो जीत समझना
सपनों के पंखो पर उड़कर
इधर उधर जब भटका
भूत भविष्यत के चक्कर मे
वर्तमान को झिड़का
वर्तमान बन कर तुम बोले
जडें सीचना रीति समझना
खून पसीने से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का रेला तब आया
सोँप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल: 15.03 ०८ ]

Friday, 21 March 2008

पागल मेघा

जन गण कानाफूसीँ करता
हो गए है मेघा पागल
पानी भरकर लिए मशक में
घूम रहे हैँ इधर उधर
तरसाते हैँ बूँद बूँद को
तपते मरुथल बनें अधर
मागें पानी पत्थर गिरता
मेघा हो गए हैं पागल
ना जानें पागल विजली से
पाला हैँ कैसा रिश्ता
करें मुनादी ढोल पीटकर
करते जनजीवन खस्ता
जो पथ में आजाये मरता
गुस्से में जब आजाते हैं
देखें ना आगा-पीछा
गाँव शहर जड़ चेतन सासें
कर देते सबको छीछा
इन्द्रधनुष टीबी बहुत अखरता
हो गए हैं मेघा पागल
[भोपाल ०८। ०९। ०७ ]

Friday, 14 March 2008

गीत लिखूँ नया नया

गीत लिखूँ नया नया
तितली भौरा के संग नाचूं

फूल फूल की भाषा बाचूँ
बीज उधार सभी से लेलूँ
क्यारी क्यारी में फिर बो दूँ
निरखूँ अंकुर नया नया
गीत लिखूँ तब नया नया
नदी किनारे जाकर बैठूँ
लहर लहर से फिर मैं पूछूँ
नदिया अविरल क्यों बहती ?
कल कल मैं क्या क्या कहती ?
पढूँ गुनूँ जब सतत बया
गीत लिखूँ टीबी नया नया
धुआं उठे जब ना चौके मैं
सूना घर डूबे सदमें मैं
बिना कफन के लाश तड़पते
हर पल बाई आँख फद्क्ती
उमदे करुना भाव दया
गीत लिखूँ टैब नया नया
[भोपाल 1०. 1.०८]

आम नीम की छाँव

Wednesday, 12 March 2008

जूनी नाव

जूनी नाव बुने सन्नाटा
आती याद जवानी
नई नवेली दुल्हन सी थी
सुख सपनों की रानी
लहरों से नाचा करती थी
मीरा सी दीवानी
भूले नही भूलते उसको
देश विदेशी शेलानी
जीवन रेखा थी बहुतों की
किया सहजा बहाना
गंगा यमुना के संगम में
सहजा ठौर ठिकाना
प्रलय बाड़ झंझाबातों में
मनु की बुनी कहानी
जीवन जर्जर मन बापू से
मुंह मोड सुत दारा
वैसे ही नाविक ने छोड़ा
समझ उसे नाकारा
रह रह हूक उठे अंतस में
जग करता मनमानी।
[भोपाल ०५.०३.०८ ]


Friday, 7 March 2008

गीत ग़जल कविता चिल्लाती

बहुत दिनों से गीत नहीलिख पाया
राजनीति की उठापटक मे
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदला बदली
कभी चुनाबोँ की सरगर्मी
किस पर लिखूं लिखूँ ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया
लूटपाट बाजार गरम है
तंत्र मौन होकर बैठा
राजा घूमे ऐठा एथा
किसकी सुनूँ ,सुनूँ ना किसकी
तन मन घबराया चकराया
जिनके ओठों की सच शोभा
उनका टू जीना दूभर है
रोटी रोजी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिरपर है
गीत गजाल कविता चिल्लाती
आसमान को राज न आया

[भोपाल: २८. 12.07 ]

Monday, 3 March 2008

मौत का संदेश

जब जब मौत बुलाने आई
खिड़की से जब उसने झाँका
जीवन लेखा जोखा आँका
असमंजस झूले में झूली
बदला अंतर्मन का खाका
सिर धुन धुन कर फिर प्छ्ताई
दुःख को हरदम गले लगाया
सुख को कभी नहीं ठुकराया
शूल फूल तितली भौंरा -सा
जब जब जीवन गीत सुनाया
मगन हुई सुन सुन कविताई
सुख की नींद लोरियाँ गाती
आकर मौत मुझे समझाती
'अब तक नहीं लिखा वो लिखना
अपने कद से ऊंचा उठना
गूंजे चारों ओर बधाई
[भोपाल : 25 ०२.08 ]