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Friday, 7 March 2008

गीत ग़जल कविता चिल्लाती

बहुत दिनों से गीत नहीलिख पाया
राजनीति की उठापटक मे
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदला बदली
कभी चुनाबोँ की सरगर्मी
किस पर लिखूं लिखूँ ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया
लूटपाट बाजार गरम है
तंत्र मौन होकर बैठा
राजा घूमे ऐठा एथा
किसकी सुनूँ ,सुनूँ ना किसकी
तन मन घबराया चकराया
जिनके ओठों की सच शोभा
उनका टू जीना दूभर है
रोटी रोजी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिरपर है
गीत गजाल कविता चिल्लाती
आसमान को राज न आया

[भोपाल: २८. 12.07 ]

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