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Monday, 24 March 2008

अपना गीत समझना

पथ में आकर जब शूलों ने
अपना राग अलापा
दुःख दर्दों ने बिना झिझक के
लूटा खूब मुनाफा
तुमने आकर कहा कान में
जब जब हारो जीत समझना
सपनों के पंखो पर उड़कर
इधर उधर जब भटका
भूत भविष्यत के चक्कर मे
वर्तमान को झिड़का
वर्तमान बन कर तुम बोले
जडें सीचना रीति समझना
खून पसीने से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का रेला तब आया
सोँप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल: 15.03 ०८ ]

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