खिड़की से जब उसने झाँका
जीवन लेखा जोखा आँका
असमंजस झूले में झूली
बदला अंतर्मन का खाका
सिर धुन धुन कर फिर प्छ्ताई
दुःख को हरदम गले लगाया
सुख को कभी नहीं ठुकराया
शूल फूल तितली भौंरा -सा
जब जब जीवन गीत सुनाया
मगन हुई सुन सुन कविताई
सुख की नींद लोरियाँ गाती
आकर मौत मुझे समझाती
'अब तक नहीं लिखा वो लिखना
अपने कद से ऊंचा उठना
गूंजे चारों ओर बधाई
[भोपाल : 25 ०२.08 ]
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