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Thursday, 27 March 2008

उदघोशना

गोरे गोरे हाथ पाँव मेँमेंहदी मोहि न रचना ammaa
जनम जनम जन्मान्तर मेँ भी बिटिया मोहि न बनना
अम्मा बापू का प्यार जगा
मेरे जीवन का बीज उगा
जंगल मेँ जैसे आग लगी
परिजन मन मेँ विस्वास जगा
इसकी उसकी जांच परख का मोहरा मोहि न बनना
जैसे ही मैं हुई सयानी
घर बाहर की बनी कहानी
कानाफूसीँ शुरू हो गई
आंखों की किरकिरी जवानी
अस्मत अपनी लुटा लुटा कर मोहि न आग मेँ जलना
चूल्हा चौका पिंड न छोड़े
आफिस मेँ भी खाता खोले
छोटे बड़े सभी का मनुआ
मेरे आगे पीछे डोले
घर baahr
[बुरहान्पुर से छनेरा रेल यात्रा : 26.08. 2007]

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