जूनी नाव बुने सन्नाटा
आती याद जवानी
नई नवेली दुल्हन सी थी
सुख सपनों की रानी
लहरों से नाचा करती थी
मीरा सी दीवानी
भूले नही भूलते उसको
देश विदेशी शेलानी
जीवन रेखा थी बहुतों की
किया सहजा बहाना
गंगा यमुना के संगम में
सहजा ठौर ठिकाना
प्रलय बाड़ झंझाबातों में
मनु की बुनी कहानी
जीवन जर्जर मन बापू से
मुंह मोड सुत दारा
वैसे ही नाविक ने छोड़ा
समझ उसे नाकारा
रह रह हूक उठे अंतस में
जग करता मनमानी।
[भोपाल ०५.०३.०८ ]
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