तौर तरीके गंवई-गाँव के
बुधिया की जीवन थाती
मुट्ठी भर कंकाली तन में
जाने कितनी ऊर्जा
मजदूरी के बलबूते पर
चुका दिया सब कर्जा
हंसी खुशी की सब परिजन को
समय समय पर लिखती पाती
तीज और त्योहारों की जब
खुशियाँ मागे खर्चा
इतना जोड़ जोड़ रख लेती
घर घर होती चर्चा
आस पास नाते रिश्तों में
सबको परसा पहुंचाती
कहों कहों खलिहान खेत हैं
करना कहों बुबाई
कहों खाद पानी देना है
करना कहों नुनाई
जिनके घर हल बैल नहीं
उनको भी न्याय दिलाती
[बुरहानपुर से छनेरा :रेल यात्रा : 05 09 .09]
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