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Monday, 30 June 2008

बापू

सूरज और चाँद देते हैं
खा कसम गवाही
बापू कभी हार न मानें !
कोर्ट-कचेहरी, खेत हार में
सबका बस्ता बंध जाता
धरा-गगन में सन्नाटे का
पक्का ठप्पा लग जाता
समय बांधकर पाव बेडियाँ
गाने गगन नीड़ गाता
बापू बाँध कान पर पट्टी
नापें रस्ता मनमानें
भूख-प्यास कपड़े-लत्तों की
चिंता कभी नहीं पाली
सोने चांदी के ढेर पड़े
ओछी नजर नहीं डाली
श्रम शीकर के बलिदानों ने
मुट्ठी रखी नहीं खाली
नगरसेठ धन्नासेठों के
जीवन भर सुने न तानें
पर नारी पर भूले भटके भी
कभी नहीं डोरे डाले
नशा किया तो रहे होस में
टीआरएस गये कीचड़ नाले
चंचल मन के द्वार -द्वार पर
जड अलीगादिया ताले
छोटे-बडे sbhee रिश्तों को
बख्शे थे शाल दुशाले
दानशीलता भोलेभाले
दूर -दराज़ न अनजाने
[भोपाल :२३.०६ .०७]

Sunday, 29 June 2008

रमुआ की किस्मत

जगर -मगर सब ओर दिवाली
रमुआ घर -आंगन अधियारी

chakbandee के चक्कर में
लेनदेन की टक्कर में
सबको खुश ना क्र पाया
सबकी खेती होती सिंचित
बस, उसकी ही रहे सियारी
कमर तोड़ महगाई ने
महगी हुई पढ़ाई ने
थामा हाथ उधारी का
घर घर बेला सीना ताने
उस घर इमली खडी उधारी
दिन उसके फिरने वाले
दुःख बादल छटने वाले
पढ़े -लिखे बेटेनौकर
खर्चे कम अब बचत सबाई
सब जग जले देख उजियारी
[भोपाल:१०.११.०८]

गबरू की बिटिया

मैं गरीब गबरू की बिटिया
और कुंडली में है मंगल

मेरे यौवन की आहट से
अम्मा बापू की नींद उड़ी
पीले हाथ करूं किस विधि
चिंता की आंधी उमड़ पडी
सोंच बिचार करें आपस में
बातों बातों में हो खलबल

छूंछी जेब उड़ाती खिल्ली
बापू के पैरों में छाले
आस-पास की ख़ाक छान ली
अते -पते ,घर, वर के लाले
खोजबीन की चाह भटकती
डगर गाव अनजाने जंगल

रोटी रोजी चौपट हो गई
भूख -प्यास की रही न चिंता
चलती फिरती देखूं लाशें
मेरा मन अनचाहे भिंचता
अविवाहित रहने की ठानी
सकते में आंचल का अंचल
[भोपाल:२६.१०.०७]

नया परिवेश

भाई बहनों सच सच बोलो
क्या इसको स्वीकार करोगे
उघरे तन में नई फिरती बनी ठनी
बाजारों में जाकर देखो
रंग बिरंगी उडें तितिलियाँ
आँख बंद कर बगुले घूमें
फंस जाए मासूम मछलियाँ
नईसभ्यता कीचड़ में है सनी सनी
बीज बिदेशी खेत खेत में
अपना परचम है फहराते
अपना उल्लू सीधा करते
सोलह दूनी आठ पढ़ाते
इक्दिम तिक्दिम सोची समझी गिनी चुनी
टूट गये परिवार हमारे
बिछुड़ गये बहनों से भाई
देखो भैया पति पत्नी पर
खर्च हो रही खरी कमाई
चाटे दीमक जड़ जमीन है घुनी घुनी
[भोपाल:१६.०८.०७]

पिरती रहती

रामबती बेचारी बिधवा
घानी सी पिरती रहती
जीवन में हसने गाने की
जब जब नौबत आती है
दिया सिसकता आँसू पी पी
बुझ बुझ जाती बाती है
नून तेल लकडी चिंता में
बिना जले जलती रहती
खेत जोतने बोने का जब
सर पर भूत सबार हुआ
गहने सारे गिरवी रखकर
खाद औ बीज उधार लिया
करे निराई और सिचाई
चरखी सी चलती रहती
हरा भरा खलिहान हुआ जब
पिछ्ला कर्ज याद आया
साँस साँस पर मौत का पहरा
अरे लाश पर चलती फिरती
सबसे पहले खाट छोड़ना
दसं भर हरे घाव सीना
घर बाहर की हर चिंता में
घुल घुल करके नित जीना
हंसते सूरज सी उगती
चंदा सी बदती घटती
[भोपाल:०६.०८.२००७]




रघुआ का मधुमास

ठेंगा दिखा दिखा कर हंसता
रघुआ को मधुमास
हल कुदाल खुरपी समझाती
मेहनत का अनुवाद
हरी भरी फसलों के संग संग
नाच उठे अनुवाद
आसमान में लगा तैरने
रघुआ का विश्वास
खड़ी फसल की सूदखोर जब
नीलामी करबाता
सदमा खा सुखिया चल बसती
बिना कफन दफनाता
तबसे ही चिंता में डूबा
rघुआ रहे उदास
आठ आठ आँसू रोता है
छानी छप्पर बचपन
बिना मौत चिंता ने चाता
यद्धपि था बो पचपन
समय समाज सभी को अखरा
रघुआ योग समास
[रेल यात्रा : भोपाल से बुरहानपुर :३० .०८ .००७]

Saturday, 28 June 2008

मेरा घर

छूमंतर हो जाय जहां पर
तन-मन बसी थकान
आस -पास में वहीं मिलेगा
मेरा घर दालान
आम नीम बरगद पीपल की
जहां घनेरी छांव
जेठ दुपहरी थके पथिक के
थमें जहां पर पाँव
करें बसेरा मिलजुल पंछीं
गायें गौरव गान
जहां बिसात बिछी सपनों की
लोरी की सौगात
गडी नाल पीढी डर पीढी
बता रही औकात
रहें कहीं भी इस दुनिया में
पल पल खींचे ध्यान
माँ चूल्हे की सिंकी रोटियाँ
दादी फेरी छाछ
सम्बन्धों के कोमल किसलय
हरा भरा ज्यों गाछ
खोज खोज कर हारे घर के
मिलें नहीं उपमान
[भोपाल :०२.०६.०८ ]

Sunday, 8 June 2008

सपनों में बापू

सपनों में जब बापू आते
कानों में सब कुछ ख जाते
इस जीवन का मर्म समझना
साँस साँस का अर्थ परखना
जो करना है करना ऐसा
साँस साँस गंधों से भरना
जो कोई ऐसा कर पाते
शिलालेख बनकर सरसाते
दुनिया है यह रंग रंगीली
काली गोरी नीली पीली
ख़ुद को खोकर जिसने माँगा
भरी लबालब उसकी झोली
कामक्रोध मद जिसे न भाते
सुख उसके दर पर मुस्काते
जन मन गन की पीर जानना
हर आंसू का ताप नापना
पीर ताप की तपन गीत हो
रंग लाती है सतत साधना
मैं जगता बापू गम होते
उभय नयन आंसू छलकाते
[भोपाल:२२.५.०८ ]