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Sunday, 29 June 2008

नया परिवेश

भाई बहनों सच सच बोलो
क्या इसको स्वीकार करोगे
उघरे तन में नई फिरती बनी ठनी
बाजारों में जाकर देखो
रंग बिरंगी उडें तितिलियाँ
आँख बंद कर बगुले घूमें
फंस जाए मासूम मछलियाँ
नईसभ्यता कीचड़ में है सनी सनी
बीज बिदेशी खेत खेत में
अपना परचम है फहराते
अपना उल्लू सीधा करते
सोलह दूनी आठ पढ़ाते
इक्दिम तिक्दिम सोची समझी गिनी चुनी
टूट गये परिवार हमारे
बिछुड़ गये बहनों से भाई
देखो भैया पति पत्नी पर
खर्च हो रही खरी कमाई
चाटे दीमक जड़ जमीन है घुनी घुनी
[भोपाल:१६.०८.०७]

2 comments:

Anonymous said...

bhut sundar. sundar rachana ke liye badhai. jari rhe.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.

Jaijairam anand said...

bahut bahut dhanyvad
rashmi ji
Dr jaijairam