सूरज और चाँद देते हैं
खा कसम गवाही
बापू कभी हार न मानें !
कोर्ट-कचेहरी, खेत हार में
सबका बस्ता बंध जाता
धरा-गगन में सन्नाटे का
पक्का ठप्पा लग जाता
समय बांधकर पाव बेडियाँ
गाने गगन नीड़ गाता
बापू बाँध कान पर पट्टी
नापें रस्ता मनमानें
भूख-प्यास कपड़े-लत्तों की
चिंता कभी नहीं पाली
सोने चांदी के ढेर पड़े
ओछी नजर नहीं डाली
श्रम शीकर के बलिदानों ने
मुट्ठी रखी नहीं खाली
नगरसेठ धन्नासेठों के
जीवन भर सुने न तानें
पर नारी पर भूले भटके भी
कभी नहीं डोरे डाले
नशा किया तो रहे होस में
टीआरएस गये कीचड़ नाले
चंचल मन के द्वार -द्वार पर
जड अलीगादिया ताले
छोटे-बडे sbhee रिश्तों को
बख्शे थे शाल दुशाले
दानशीलता भोलेभाले
दूर -दराज़ न अनजाने
[भोपाल :२३.०६ .०७]
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