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Sunday, 29 June 2008

गबरू की बिटिया

मैं गरीब गबरू की बिटिया
और कुंडली में है मंगल

मेरे यौवन की आहट से
अम्मा बापू की नींद उड़ी
पीले हाथ करूं किस विधि
चिंता की आंधी उमड़ पडी
सोंच बिचार करें आपस में
बातों बातों में हो खलबल

छूंछी जेब उड़ाती खिल्ली
बापू के पैरों में छाले
आस-पास की ख़ाक छान ली
अते -पते ,घर, वर के लाले
खोजबीन की चाह भटकती
डगर गाव अनजाने जंगल

रोटी रोजी चौपट हो गई
भूख -प्यास की रही न चिंता
चलती फिरती देखूं लाशें
मेरा मन अनचाहे भिंचता
अविवाहित रहने की ठानी
सकते में आंचल का अंचल
[भोपाल:२६.१०.०७]

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