मैं गरीब गबरू की बिटिया
और कुंडली में है मंगल
मेरे यौवन की आहट से
अम्मा बापू की नींद उड़ी
पीले हाथ करूं किस विधि
चिंता की आंधी उमड़ पडी
सोंच बिचार करें आपस में
बातों बातों में हो खलबल
छूंछी जेब उड़ाती खिल्ली
बापू के पैरों में छाले
आस-पास की ख़ाक छान ली
अते -पते ,घर, वर के लाले
खोजबीन की चाह भटकती
डगर गाव अनजाने जंगल
रोटी रोजी चौपट हो गई
भूख -प्यास की रही न चिंता
चलती फिरती देखूं लाशें
मेरा मन अनचाहे भिंचता
अविवाहित रहने की ठानी
सकते में आंचल का अंचल
[भोपाल:२६.१०.०७]
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