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Sunday, 8 June 2008

सपनों में बापू

सपनों में जब बापू आते
कानों में सब कुछ ख जाते
इस जीवन का मर्म समझना
साँस साँस का अर्थ परखना
जो करना है करना ऐसा
साँस साँस गंधों से भरना
जो कोई ऐसा कर पाते
शिलालेख बनकर सरसाते
दुनिया है यह रंग रंगीली
काली गोरी नीली पीली
ख़ुद को खोकर जिसने माँगा
भरी लबालब उसकी झोली
कामक्रोध मद जिसे न भाते
सुख उसके दर पर मुस्काते
जन मन गन की पीर जानना
हर आंसू का ताप नापना
पीर ताप की तपन गीत हो
रंग लाती है सतत साधना
मैं जगता बापू गम होते
उभय नयन आंसू छलकाते
[भोपाल:२२.५.०८ ]

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