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Sunday, 18 May 2008

बटवारा v

en

























ऐ बैठे सब अम्मा को
मांगे हिस्सा अपना अपना
पोत पोत कर पूंछ रहे सब
अम्मा बतलाओ वो कोना
बचा खुचा थोडा थोडा जो
गाद रखा है चांदी सोना
मिट्टी में सब मिल जायेगा
गदा रहा यदि जैसा तैसा
छा लेंगें हम छानी छप्पर
कर्ज चुकेगा ऐसा वैसा
सब समझातें है अम्मा को
कहते किस्सा अपना अपना
सोच रही है अम्मा मन में
किसको क्या क्या देना है
दिया उधारी में क्या किसको
किससे क्या क्या लेना है
तन मन हिम्मत हार चुका है
जाने कब तोता उड़ जाए
सचमुच में सब सच कहते
आँख सामने ही बत जाए
किया इशारा जब अम्मा ने
छाता हिस्सा अपना अपना
बोझ न सिर पर अब अम्मा
खूब चैन से अब् सोती है
न्श्वेली की खुशहाली क
स्वर्णिम शुचि सपने बोती है

बार बार अम्मा कहती है

मेरा जीवन सफल हो गया

जीते जी मेरे जीवन में

बटवारा सम्पन्न गया

उलझन खत्म अपना अपना अम्मा के

सबका बुरहानपुर अपना अपना
[burhaanpur







व्न्श्वेली









Saturday, 17 May 2008

बिन बीमारी घर बीमार

माँ ने जब से पकड़ी खटिया
बिन बीमारी घर बीमार
ऐसा मेरी माँ का प्यार
घर आंगन चौपाल चौतरा
तुलसी चौरा मन्दिर सूना
चारों ओर उदासी छायी
दुःख दिन दूना रात चौगुना
देखे सुने वही हैरान
करता प्रश्नों की बौछार
खुसर पुसर बहुओं में होती
माँ की ,बस, लम्बी बीमारी
आए दिन बातों बातों में
बेटा बहु बीच में गारी
माँ की देखभाल का भार
जिसकी बारी उसे बुखार
सोते जगते बापू तन मन
माँ जैसा ही हो जाता है
हार खेत हाजिरी लगाना
नामुमकिन ही हो जाता है
नीके नागा आते भाव
जीवन नाव बीच मझधार
जडी बूटियों गंगा जल ने
जाने कैसा जादू डाला
माँ कोई भी दवा न खाती
राम नाम की जपती माला
पसोपेश में सभी डॉक्टर
बीमारी बन गई पहार
[भोपाल:०७.०५.०८.]

Thursday, 15 May 2008

आओ तुन्हें बताता हूँ मैं

आओ तुन्हें बताता हूँ मैं
कैसी मेरी जसुदा मैया
तन माटी का दिया सजाती
मन की बाती रोज जलाती
तम की थाती जहाँ जहाँ पर
नागा बिना दिया धर आती
रात अमावस अधियारी में
चमके जैसे शरद जुनैया
माँ का अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने
पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने
सारा जीवन होम दिया था
कभी न मुह से निकली दैय्या
कभी खुरदरे शब्द न आए
ओंठों पर भी भूले भटके
सबद सबद कविता बनते थे
लगते हरदम टटके टटके
नवल धवल बसनों में लगती
हंस गामिनी मेरी मैया
घर आँगन चोपाल कहाँ पर
तुलसी चोरा दीपक धरना
तीज तिमाही त्यौहारों पर
कब कब किसको कैसा करना
चलती फिरती तुलसी बिरचित
रामायण सी मेरी मैया
(भोपाल १५-०८-०७)

Tuesday, 13 May 2008

कैसी मेरी जसुदा मैया

आओ तुन्हें बताता मैं
कैसी मेरी जसुदा मैया

तन माटी का की दिया सजाती
मन की बाती रोज जलाती
तम थाती जहाँ जहाँ पर
बिना दिया धर आती
रात अमावस अधियारी में
चमके aजैसे शरद जुनैया

अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने

पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने

सारा जीवन होम दिया था

कभी न मुह से निकली दैय्या

कभी खुरदरे शब्द न गत लगते


हरदम पर भी भूले भटके

थे लगाते लगाते बनते the

Tuesday, 6 May 2008

सोनचिरैया

मलयानिल कानों में कहती

मलयानिल कानों मे कहती
मेरी अम्मा सोनचिरैया
हात पकड़ते ही अम्मा के
सारा घर गम पीता
जैसे सूरज के ढलते ही
सारा जग तम जीता
अम्मा चलती घर चलता था
घर कश्ती की कुशल खिवैया
बात बतंगड़ जब बनती
कैसे दफना देना
छोटी बड़ी रंजिशों काविष
यों ही उतार देना
जो मागो सो वह देती थी

kaamdhenu kee वंशज मैया
कब कैसा रोना गाना
किसका क्या लेना देना
कितनासब समझाना
कब कितना जद जमीन
की सिर्जन्हारी
मेरी थी जसुदा मैया
आल चलन की कुशल चितेरी
उंगली उठ ना पाई
जद ज़मीन तन-मन से सींची
सौंपी खरी कमाई
जहाँ जरूरत जैसी होती
झटपट ढल जाती थी अम्मा
[भोपाल:०७.०८.०७]

Sunday, 4 May 2008

गीत ग़ज़ल कवित्त चिल्लाती

भुत दिनों से गीत नहीं लिख पाया
राजनीति की उठा पटक में
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदलाबदली
कभी चुनावों की सरगर्मी
किस पर लिखूं लिखूं ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया
लूटपाट बाज़ार गर्म है
तन्त्र मौन होकर बैठा
सरे आम इज्जत लुटती है
राजा घूमे ऐंठा ऐंठा
किसकी सुनूं सुनूं ना किसकी
तन मन घबराया चकराया
जिनके ओंठों की सच शोभा
उनको तों जीना दूभर है
रोजी रोटी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिर पर है
गीत ग़ज़ल कविता चिल्लाती
आसमान को राज न आया
[भोपाल:२८.१२.०७ ]