आओ तुन्हें बताता हूँ मैं
कैसी मेरी जसुदा मैया
तन माटी का दिया सजाती
मन की बाती रोज जलाती
तम की थाती जहाँ जहाँ पर
नागा बिना दिया धर आती
रात अमावस अधियारी में
चमके जैसे शरद जुनैया
माँ का अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने
पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने
सारा जीवन होम दिया था
कभी न मुह से निकली दैय्या
कभी खुरदरे शब्द न आए
ओंठों पर भी भूले भटके
सबद सबद कविता बनते थे
लगते हरदम टटके टटके
नवल धवल बसनों में लगती
हंस गामिनी मेरी मैया
घर आँगन चोपाल कहाँ पर
तुलसी चोरा दीपक धरना
तीज तिमाही त्यौहारों पर
कब कब किसको कैसा करना
चलती फिरती तुलसी बिरचित
रामायण सी मेरी मैया
(भोपाल १५-०८-०७)
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