माँ ने जब से पकड़ी खटिया
बिन बीमारी घर बीमार
ऐसा मेरी माँ का प्यार
घर आंगन चौपाल चौतरा
तुलसी चौरा मन्दिर सूना
चारों ओर उदासी छायी
दुःख दिन दूना रात चौगुना
देखे सुने वही हैरान
करता प्रश्नों की बौछार
खुसर पुसर बहुओं में होती
माँ की ,बस, लम्बी बीमारी
आए दिन बातों बातों में
बेटा बहु बीच में गारी
माँ की देखभाल का भार
जिसकी बारी उसे बुखार
सोते जगते बापू तन मन
माँ जैसा ही हो जाता है
हार खेत हाजिरी लगाना
नामुमकिन ही हो जाता है
नीके नागा आते भाव
जीवन नाव बीच मझधार
जडी बूटियों गंगा जल ने
जाने कैसा जादू डाला
माँ कोई भी दवा न खाती
राम नाम की जपती माला
पसोपेश में सभी डॉक्टर
बीमारी बन गई पहार
[भोपाल:०७.०५.०८.]
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