आओ तुन्हें बताता मैं
कैसी मेरी जसुदा मैया
तन माटी का की दिया सजाती
मन की बाती रोज जलाती
तम थाती जहाँ जहाँ पर
बिना दिया धर आती
रात अमावस अधियारी में
चमके aजैसे शरद जुनैया
अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने
पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने
सारा जीवन होम दिया था
कभी न मुह से निकली दैय्या
कभी खुरदरे शब्द न गत लगते
हरदम पर भी भूले भटके
थे लगाते लगाते बनते the
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