Welcome!

Tuesday, 13 May 2008

कैसी मेरी जसुदा मैया

आओ तुन्हें बताता मैं
कैसी मेरी जसुदा मैया

तन माटी का की दिया सजाती
मन की बाती रोज जलाती
तम थाती जहाँ जहाँ पर
बिना दिया धर आती
रात अमावस अधियारी में
चमके aजैसे शरद जुनैया

अंतस करुना सागर
बात बात में लगे पिघलने

पीर पराई हर लेने को
जब देखो तब लगे मचलने

सारा जीवन होम दिया था

कभी न मुह से निकली दैय्या

कभी खुरदरे शब्द न गत लगते


हरदम पर भी भूले भटके

थे लगाते लगाते बनते the

No comments: