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Sunday, 4 May 2008

गीत ग़ज़ल कवित्त चिल्लाती

भुत दिनों से गीत नहीं लिख पाया
राजनीति की उठा पटक में
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदलाबदली
कभी चुनावों की सरगर्मी
किस पर लिखूं लिखूं ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया
लूटपाट बाज़ार गर्म है
तन्त्र मौन होकर बैठा
सरे आम इज्जत लुटती है
राजा घूमे ऐंठा ऐंठा
किसकी सुनूं सुनूं ना किसकी
तन मन घबराया चकराया
जिनके ओंठों की सच शोभा
उनको तों जीना दूभर है
रोजी रोटी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिर पर है
गीत ग़ज़ल कविता चिल्लाती
आसमान को राज न आया
[भोपाल:२८.१२.०७ ]

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