अविता करना खेल नहीं
समझो इसे मजाक नही
सर सरिता वन उपवन गलियाँ
स्वाति पपीहा भ्रमर तितलियाँ
सूरज जल थल तारे
अनगिनती रागों की पुडिया
रहती कभी अवाक नहीं
इसमें कोई झूठ नहीं
शब्द बीज का राज समझना
ली -गति -छंद पराग परखना
तुलसी -सूर कबीर निराला
समय समाज समास पकड़ना
ललुआ की औकात नहीं
शब्दों भर का मेल नहीं
फटी बिबाई दर्द आँकना
भूख -प्यास भूगोल खीचना
पी जाना सब पीर पराई
अंतस रेलमपेल जाँचना
सीधी सरल किताब नहीं
सबमें इतना तेल नहीं
[भोपाल: १८.१० .०७]
सर -सरिता वन उपवन गलियां
स्वातिपपीहा भ्रमर तितलियाँ
चन्दा सूरज जल थल तारे
इ रागों की पुडिया
आ समझना कभी awaa k नहीं
शब्द बीज का राज smjhnaa ले- gti
Tuesday, 29 April 2008
Sunday, 27 April 2008
अपना गीत समझना
सुनो साथियो जो मैं गाऊँ
अपना राग अलापा
दुःख दर्दों ने बिना झिझक के
लूटा खूब मुनाफा
तुमने आकर खा कान में
जब जब हारों जीत समझना
सपनों के पंखों पर उडकर
इधर उधर जब भटका
भूत भविष्यत के चक्कर में
वर्तमान को झिड़का
वर्तमान बनकर तुम बोले
जडें सींचना रीति समझना
खून पसीनें से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का टीबी रेला आया
सौप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल :१५.० 3.०८]
ko अपना गीत समझना
अपना राग अलापा
दुःख दर्दों ने बिना झिझक के
लूटा खूब मुनाफा
तुमने आकर खा कान में
जब जब हारों जीत समझना
सपनों के पंखों पर उडकर
इधर उधर जब भटका
भूत भविष्यत के चक्कर में
वर्तमान को झिड़का
वर्तमान बनकर तुम बोले
जडें सींचना रीति समझना
खून पसीनें से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का टीबी रेला आया
सौप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल :१५.० 3.०८]
Monday, 7 April 2008
अम्मा
सच कहता हूँ मेरी अम्मा
मर मर कर भीमरी नहीं !
घर आंगन खलिहान खेत के
सारे फर्ज निभाए
-देवरानी ननदों ने टोंका
आंधी तूफानो ने रोका
थक थक कर भी थकी नहीं
मेरी अम्मा
घर बाहर या आनगाँव का
द्वारे पथिक ठिठक जाए
बात बात में अम्मा आए
आवभगत नयनों में छाये
खारा निर्झर झर झर जाए
झर झर कर भी
झरी नहीं
मेरी अम्मा
जब जब खर्च खड़े मुँह बाए
खर्चा पानी जुटा न पाये
यादों में तव अम्मा छाई
सीधी साधी राह बताई :
खर्च करो कम ,बच बच जाए
खर्च खर्च कर
खुटी नहीं
मेरी अम्मा
[भोपाल मात्र दिवस : 03.05 .07]
Saturday, 5 April 2008
कितने दिन ठहरोगे लाल?
पड़ा दिखाई ज्यों हीं गाँव
लगे ठिठकने मेरे पाँव
चम चम चमका उसका भाल
लगा पूछ्नें एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल?
शुभागमन का गूंजा शंख
खुशियों के उग आए पंख
सकल गाँव हो उठा निहाल
उछला केवल एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल
जो भी मिला गया पहचान
यद्यपि मैं उससे अनजान
अपनेपन का मायाजाल
मचला केवल एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
झ्बुआ लगा चाटने लगा पोंव
हिलाहिला कर मांगें दाव
रस्सी खूंटा के बेहाल
सबके मुह पर एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
कुआ बावडी उछले ताल
उछाली मछली टूटेजाल
सभी पखेरू मोदे चाल
उत्तर मागे एक सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
जोर जोर से हुई पुकार
लो आओ पहनो यह हार
शूल फूल ने किया कमाल
अनुत्तरित था एक सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
शुभ स्वागत की शुभग बहार
मलयानिल की सुखद बहार
सूरज चन्दा पूछें हाल
लटका चारों ओर सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
मन गदगद अनगिनती भाव
विह्वलता में डूबी नाव
भूले करना अधर कमाल
याद न रहा जबाव सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
[भोपाल :06. 04.०८.]
सभी पखेरू मोदे
लगे ठिठकने मेरे पाँव
चम चम चमका उसका भाल
लगा पूछ्नें एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल?
शुभागमन का गूंजा शंख
खुशियों के उग आए पंख
सकल गाँव हो उठा निहाल
उछला केवल एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल
जो भी मिला गया पहचान
यद्यपि मैं उससे अनजान
अपनेपन का मायाजाल
मचला केवल एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
झ्बुआ लगा चाटने लगा पोंव
हिलाहिला कर मांगें दाव
रस्सी खूंटा के बेहाल
सबके मुह पर एक सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
कुआ बावडी उछले ताल
उछाली मछली टूटेजाल
सभी पखेरू मोदे चाल
उत्तर मागे एक सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
जोर जोर से हुई पुकार
लो आओ पहनो यह हार
शूल फूल ने किया कमाल
अनुत्तरित था एक सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
शुभ स्वागत की शुभग बहार
मलयानिल की सुखद बहार
सूरज चन्दा पूछें हाल
लटका चारों ओर सवाल
कितने दिन ठहरोगे लाल ?
मन गदगद अनगिनती भाव
विह्वलता में डूबी नाव
भूले करना अधर कमाल
याद न रहा जबाव सवाल
कितने दिन ठहरोगो लाल ?
[भोपाल :06. 04.०८.]
सभी पखेरू मोदे
Friday, 4 April 2008
सृष्टि सृजन का सम्बल नारी
गुरु लघु अनुबंधोँ से नापो
नर से नारी दुगनी भारी
रत्ती भर भी शक सुबह न इसमें
सृती सृजन का सम्बल नारी
स्रष्टि सृजन इतिहास बताता
घर आगन सूना रह जाता
तस से मस ना होता जीवन
कोख न बनती जीवन दाता
तुलसी सूरा ना गा पाते
होती क्या कैसी किलकारी ?
संबंधो की अनुपम कडियों
हसी खुसी की अनगिन लडिया
इर्द गिर्द नारी के झरती
महल झोपडीँ की फुल्झादियाँ
सम्बन्धों की पुलिया नारी
पार उतारे दुनिया सारी
धरा गगन जल थल गहराई
धर्म कर्म धीरज चतुराई
पशु पक्षी पौधों का जीवन
मागें माता से भरपाई
प्रकृति नटी संकेत दे रही
महा मही जग की महतारी
{भोपाल:25.03. 08]
नर से नारी दुगनी भारी
रत्ती भर भी शक सुबह न इसमें
सृती सृजन का सम्बल नारी
स्रष्टि सृजन इतिहास बताता
घर आगन सूना रह जाता
तस से मस ना होता जीवन
कोख न बनती जीवन दाता
तुलसी सूरा ना गा पाते
होती क्या कैसी किलकारी ?
संबंधो की अनुपम कडियों
हसी खुसी की अनगिन लडिया
इर्द गिर्द नारी के झरती
महल झोपडीँ की फुल्झादियाँ
सम्बन्धों की पुलिया नारी
पार उतारे दुनिया सारी
धरा गगन जल थल गहराई
धर्म कर्म धीरज चतुराई
पशु पक्षी पौधों का जीवन
मागें माता से भरपाई
प्रकृति नटी संकेत दे रही
महा मही जग की महतारी
{भोपाल:25.03. 08]
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