सच कहता हूँ मेरी अम्मा
मर मर कर भीमरी नहीं !
घर आंगन खलिहान खेत के
सारे फर्ज निभाए
-देवरानी ननदों ने टोंका
आंधी तूफानो ने रोका
थक थक कर भी थकी नहीं
मेरी अम्मा
घर बाहर या आनगाँव का
द्वारे पथिक ठिठक जाए
बात बात में अम्मा आए
आवभगत नयनों में छाये
खारा निर्झर झर झर जाए
झर झर कर भी
झरी नहीं
मेरी अम्मा
जब जब खर्च खड़े मुँह बाए
खर्चा पानी जुटा न पाये
यादों में तव अम्मा छाई
सीधी साधी राह बताई :
खर्च करो कम ,बच बच जाए
खर्च खर्च कर
खुटी नहीं
मेरी अम्मा
[भोपाल मात्र दिवस : 03.05 .07]
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