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Friday, 4 April 2008

सृष्टि सृजन का सम्बल नारी

गुरु लघु अनुबंधोँ से नापो
नर से नारी दुगनी भारी
रत्ती भर भी शक सुबह न इसमें
सृती सृजन का सम्बल नारी
स्रष्टि सृजन इतिहास बताता
घर आगन सूना रह जाता
तस से मस ना होता जीवन
कोख न बनती जीवन दाता
तुलसी सूरा ना गा पाते
होती क्या कैसी किलकारी ?
संबंधो की अनुपम कडियों
हसी खुसी की अनगिन लडिया
इर्द गिर्द नारी के झरती
महल झोपडीँ की फुल्झादियाँ
सम्बन्धों की पुलिया नारी
पार उतारे दुनिया सारी
धरा गगन जल थल गहराई
धर्म कर्म धीरज चतुराई
पशु पक्षी पौधों का जीवन
मागें माता से भरपाई
प्रकृति नटी संकेत दे रही
महा मही जग की महतारी
{भोपाल:25.03. 08]

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