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Tuesday, 29 April 2008

कविता करना खेल नहीं

अविता करना खेल नहीं

समझो इसे मजाक नही
सर सरिता वन उपवन गलियाँ
स्वाति पपीहा भ्रमर तितलियाँ
सूरज जल थल तारे
अनगिनती रागों की पुडिया
रहती कभी अवाक नहीं
इसमें कोई झूठ नहीं
शब्द बीज का राज समझना
ली -गति -छंद पराग परखना
तुलसी -सूर कबीर निराला
समय समाज समास पकड़ना
ललुआ की औकात नहीं
शब्दों भर का मेल नहीं
फटी बिबाई दर्द आँकना
भूख -प्यास भूगोल खीचना
पी जाना सब पीर पराई
अंतस रेलमपेल जाँचना
सीधी सरल किताब नहीं
सबमें इतना तेल नहीं
[भोपाल: १८.१० .०७]










सर -सरिता वन उपवन गलियां





स्वातिपपीहा भ्रमर तितलियाँ





चन्दा सूरज जल थल तारे



































इ रागों की पुडिया



आ समझना कभी awaa k नहीं






शब्द बीज का राज smjhnaa ले- gti


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