ko अपना गीत समझना
अपना राग अलापा
दुःख दर्दों ने बिना झिझक के
लूटा खूब मुनाफा
तुमने आकर खा कान में
जब जब हारों जीत समझना
सपनों के पंखों पर उडकर
इधर उधर जब भटका
भूत भविष्यत के चक्कर में
वर्तमान को झिड़का
वर्तमान बनकर तुम बोले
जडें सींचना रीति समझना
खून पसीनें से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का टीबी रेला आया
सौप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल :१५.० 3.०८]
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