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Sunday, 27 April 2008

अपना गीत समझना

सुनो साथियो जो मैं गाऊँ




ko अपना गीत समझना




पथ पर आकर जब शूलों ने



अपना राग अलापा



दुःख दर्दों ने बिना झिझक के



लूटा खूब मुनाफा





तुमने आकर खा कान में


जब जब हारों जीत समझना



सपनों के पंखों पर उडकर



इधर उधर जब भटका



भूत भविष्यत के चक्कर में



वर्तमान को झिड़का



वर्तमान बनकर तुम बोले

जडें सींचना रीति समझना
खून पसीनें से जब मैनें
अपनी कलम दुबई
गीतों का टीबी रेला आया
सौप गया कविताई
तुम जैसा मेरा अंतर्मन
प्रीति डगर का मीत समझना
[भोपाल :१५.० 3.०८]
















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