अभिनव सौ सौ बार बधाई
शैल शिखर पर चढ़कर तुमने
जैसे ही झंडा फहराया
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
लहर लहर त्यों ही लहराया
दशों दिशा गूँजी शहनाई
अभिनव तुमने सब दुनिया को
संपि अजब गजब थाती
जिद जुनून जज्बा के बल पर
सचमुच अबुझ जलाई बाती
जाग उठी सोयी तरुनाई
शिलालेख बन गया सदा को
इतिहास रचा अभिनव तुमने
धूमिल कभी न होने देना
भारत माँ के स्वर्णिम सपने
अम्र रहे अभिनव अगुवाई
[भोपाल:११.०८.०८]
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अभिनव बिंद्रा द्वारा बीजिंग ओल्य्म्पिक 2008 में निशानेबाजी की १० मीटर एयर रायफल प्रतियोगिता में स्वर्ण
पदक जीतकर स्वर्ण बन गये .
Monday, 18 August 2008
Sunday, 17 August 2008
मेरा घर :काबा काशी
मेरे घर का कोना कोना
ताल तलैया की है थाती
गुजरे जो इसके पन्नों से
दातों तले दबाए उँगली
आंखों में तिरने लग जाए
गौरव गाथा पिछली अगली
माटी के चौपाल चौतरा
हाथों हाथ लिए हैं पाती
भूले भटके भूखे प्यासे
मिले न जिनको ठौर ठिकाना
चूल्हा चौका बहू बेटियाँ
परसें हँस हँस थाल सुहाना
तुलसी चौरा देय गवाही
दे जल जलकर दीपक बाती
चप्पे चप्पे पर सुधियों का
ताजमहल है सेना ताने
सौंधी सौंधी गंध बिखेरे
सुख सपने परसे दिन दूने
मथुरा काबा या काशी
सारीदुनिया उसे बताती
[भोपाल:१२.०८.०८]
ताल तलैया की है थाती
गुजरे जो इसके पन्नों से
दातों तले दबाए उँगली
आंखों में तिरने लग जाए
गौरव गाथा पिछली अगली
माटी के चौपाल चौतरा
हाथों हाथ लिए हैं पाती
भूले भटके भूखे प्यासे
मिले न जिनको ठौर ठिकाना
चूल्हा चौका बहू बेटियाँ
परसें हँस हँस थाल सुहाना
तुलसी चौरा देय गवाही
दे जल जलकर दीपक बाती
चप्पे चप्पे पर सुधियों का
ताजमहल है सेना ताने
सौंधी सौंधी गंध बिखेरे
सुख सपने परसे दिन दूने
मथुरा काबा या काशी
सारीदुनिया उसे बताती
[भोपाल:१२.०८.०८]
Friday, 15 August 2008
गाँव की अस्मिता
गांवों की सौगात शहर ने
चौराहों पर लूटी
राजपथों की चकाचौंध में
पगदंडी भूली रस्ता
मंदी और मॉल्स ने कर दी
हालत सबकी ही खस्ता
हाथ पसारे गाँव घूमते
उनकी किस्मत फूटी
lokgeet कजरी ढोला के
स्वर साधन सब फीके
पॉप सोंग नंगे तन नर्तन
लगते सबको ही नीके
माटी के रंग गंध मूल्य की
चूलें चटपट टूटीं
राजनीति विष वेळ फैलकर
पीपल बरगद से लिपटी
उग्रवाद भ्रष्टाचारों की
जोंकें घर आँगन में चिपकी
थामें जो अस्मिता गाँव की
दीमक चाटे वे खूँटी
[भोपाल:०४.०८ ०८]
चौराहों पर लूटी
राजपथों की चकाचौंध में
पगदंडी भूली रस्ता
मंदी और मॉल्स ने कर दी
हालत सबकी ही खस्ता
हाथ पसारे गाँव घूमते
उनकी किस्मत फूटी
lokgeet कजरी ढोला के
स्वर साधन सब फीके
पॉप सोंग नंगे तन नर्तन
लगते सबको ही नीके
माटी के रंग गंध मूल्य की
चूलें चटपट टूटीं
राजनीति विष वेळ फैलकर
पीपल बरगद से लिपटी
उग्रवाद भ्रष्टाचारों की
जोंकें घर आँगन में चिपकी
थामें जो अस्मिता गाँव की
दीमक चाटे वे खूँटी
[भोपाल:०४.०८ ०८]
Friday, 8 August 2008
मेरे गीत -सबका दर्द
मेरे गीत नहा गंगा में
अपना धर्म निबाहते हैं
बिर्जू धनिया खेतों में जा
खून बहाते जब अपना
रूखी सूखी गले उतारें
देखें सपनों पर सपना
मेरे गीत लोरियाँ गा गा
माँ का फर्ज़ निभाते हैं
अमराई में गंध बौर की
बिखरा दे जब तरुनाई
डाल डाल पर कोयल कूके
पल पल में गूँजे शहनाई
मेरे गीत झूम कर गाते
सबकी तर्ज़ सुनाते हैं
कोरी आँखों रात बिता कर
कोरे कागज़ रंग डाले
पोर पोर में पीर समाई
पड़े उगलियों में छाले
मेरे गीत जहाँ भी जाते
सबका दर्द बटाते हैं
[भोपाल:०१ ०८ ०८]
अपना धर्म निबाहते हैं
बिर्जू धनिया खेतों में जा
खून बहाते जब अपना
रूखी सूखी गले उतारें
देखें सपनों पर सपना
मेरे गीत लोरियाँ गा गा
माँ का फर्ज़ निभाते हैं
अमराई में गंध बौर की
बिखरा दे जब तरुनाई
डाल डाल पर कोयल कूके
पल पल में गूँजे शहनाई
मेरे गीत झूम कर गाते
सबकी तर्ज़ सुनाते हैं
कोरी आँखों रात बिता कर
कोरे कागज़ रंग डाले
पोर पोर में पीर समाई
पड़े उगलियों में छाले
मेरे गीत जहाँ भी जाते
सबका दर्द बटाते हैं
[भोपाल:०१ ०८ ०८]
Tuesday, 5 August 2008
अम्मा बापू का ऋण
अम्मा ने हाथ धरा सर पर
बापू ने चलना सिखलाया
घर से बाहर पाँव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कहीं भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुर रटवाया
क्रूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख -दरदों के षड्यंत्रों ने
पलपल कासुख चुनचुन बीना
अम्मा ने भार लिया सर पर
बापू ने धीरज बंधवाया
जाते जाते छोड़ गये वे
अजर अमर पद चिन्ह अनूठे
महामंत्र गीता पुराण के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल- सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
[भोपाल :०७ .1१ .०७ ]
जब जब जीवन में मुसीवतें नींद छीन लेतीं हैं तब तब अम्मा और पिताजी की याद आती है वे जैसे कर्मठ थे बैसे कर्मठ बनने की प्रेरणा उनसे मिलती है उनके ऋण से कैसे उरिन हो सकते हैं .
बापू ने चलना सिखलाया
घर से बाहर पाँव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कहीं भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुर रटवाया
क्रूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख -दरदों के षड्यंत्रों ने
पलपल कासुख चुनचुन बीना
अम्मा ने भार लिया सर पर
बापू ने धीरज बंधवाया
जाते जाते छोड़ गये वे
अजर अमर पद चिन्ह अनूठे
महामंत्र गीता पुराण के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल- सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
[भोपाल :०७ .1१ .०७ ]
जब जब जीवन में मुसीवतें नींद छीन लेतीं हैं तब तब अम्मा और पिताजी की याद आती है वे जैसे कर्मठ थे बैसे कर्मठ बनने की प्रेरणा उनसे मिलती है उनके ऋण से कैसे उरिन हो सकते हैं .
Sunday, 3 August 2008
प्रश्न ?
केवल कोरे कागज़ रगना
कविता कैसे हो सकती है ?
जहाँ कहीं खूँख्वार अँधेरा
सूरज बहाँ उगाना है
कौर छीन रहा जिन के मुँहसे
उनको कौर दिलाना है
शंखनाद को सुनसुन करके
जनता कैसे सो सकती है ?
पलपल बदल रही दुनिया की
धड़कन सुनना बहुत जरूरी
उग्रबाद बाजारबाद की
चालें गुनना बहुत जरूरी
बम बारूद बिछी घर आँगन
सुबिधा कैसे हो सकती है ?
कल-कल -कल -गाते गाते
पग -पग , पल-पल ,आगे बढ़ना
दूर-दूर पुलिनों का रहकर
योग साधना में रत रहना
युग युग ने सौपीं सौगाते
सरिता कैसे खो सकती है ?
छीज रहे शब्दों की वीना
फटे बाँस की मुरली जैसी
जड़ जमीन से उखड़ी भाषा
पकी -अधपकी खिचड़ी जैसी
भानुमती का कुनबा हो तो
गीत गजल क्या हो सकती है ?
[भोपाल: १३.०७.०७]
कविता कैसे हो सकती है ?
जहाँ कहीं खूँख्वार अँधेरा
सूरज बहाँ उगाना है
कौर छीन रहा जिन के मुँहसे
उनको कौर दिलाना है
शंखनाद को सुनसुन करके
जनता कैसे सो सकती है ?
पलपल बदल रही दुनिया की
धड़कन सुनना बहुत जरूरी
उग्रबाद बाजारबाद की
चालें गुनना बहुत जरूरी
बम बारूद बिछी घर आँगन
सुबिधा कैसे हो सकती है ?
कल-कल -कल -गाते गाते
पग -पग , पल-पल ,आगे बढ़ना
दूर-दूर पुलिनों का रहकर
योग साधना में रत रहना
युग युग ने सौपीं सौगाते
सरिता कैसे खो सकती है ?
छीज रहे शब्दों की वीना
फटे बाँस की मुरली जैसी
जड़ जमीन से उखड़ी भाषा
पकी -अधपकी खिचड़ी जैसी
भानुमती का कुनबा हो तो
गीत गजल क्या हो सकती है ?
[भोपाल: १३.०७.०७]
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