गांवों की सौगात शहर ने
चौराहों पर लूटी
राजपथों की चकाचौंध में
पगदंडी भूली रस्ता
मंदी और मॉल्स ने कर दी
हालत सबकी ही खस्ता
हाथ पसारे गाँव घूमते
उनकी किस्मत फूटी
lokgeet कजरी ढोला के
स्वर साधन सब फीके
पॉप सोंग नंगे तन नर्तन
लगते सबको ही नीके
माटी के रंग गंध मूल्य की
चूलें चटपट टूटीं
राजनीति विष वेळ फैलकर
पीपल बरगद से लिपटी
उग्रवाद भ्रष्टाचारों की
जोंकें घर आँगन में चिपकी
थामें जो अस्मिता गाँव की
दीमक चाटे वे खूँटी
[भोपाल:०४.०८ ०८]
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