Welcome!

Sunday, 17 August 2008

मेरा घर :काबा काशी

मेरे घर का कोना कोना
ताल तलैया की है थाती
गुजरे जो इसके पन्नों से
दातों तले दबाए उँगली
आंखों में तिरने लग जाए
गौरव गाथा पिछली अगली
माटी के चौपाल चौतरा
हाथों हाथ लिए हैं पाती

भूले भटके भूखे प्यासे
मिले न जिनको ठौर ठिकाना
चूल्हा चौका बहू बेटियाँ
परसें हँस हँस थाल सुहाना
तुलसी चौरा देय गवाही
दे जल जलकर दीपक बाती

चप्पे चप्पे पर सुधियों का
ताजमहल है सेना ताने
सौंधी सौंधी गंध बिखेरे
सुख सपने परसे दिन दूने
मथुरा काबा या काशी
सारीदुनिया उसे बताती
[भोपाल:१२.०८.०८]

1 comment:

Anwar Qureshi said...

क्या बात है ...अच्छा लिखा है आप ने ...एक अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया ...