मैं क्या करूँ बताओ भैया
राज रोग ने भौंका भाला
तन मन सब जर्जर कर डाला
तन्त्र मन्त्र हो गए नपुंसक
रोग हो गया क्रूर अहिंसक
नहीं जेब में बचा रुपैया
दिया उधार सभी ने पहले
भारी व्याज मूल के बदले
हुमां की पूँछ उधारी
बीमारी द्रुपदा की सारी
कोई नहीं उधार दिवैया
चूल्हा देता रोज उलहना
गिरवी धर गए गहना कंगना
मर गया फसलों को लकवा
गिना चुना खेती का रकवा
पड़ा बेचना खेत मडैया
[भोपाल:०९.११.०९]