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Tuesday, 17 November 2009

मजबूरी

मैं क्या करूँ बताओ भैया
राज रोग ने भौंका भाला
तन मन सब जर्जर कर डाला
तन्त्र मन्त्र हो गए नपुंसक
रोग हो गया क्रूर अहिंसक
नहीं जेब में बचा रुपैया

दिया उधार सभी ने पहले
भारी व्याज मूल के बदले
हुमां की पूँछ उधारी
बीमारी द्रुपदा की सारी
कोई नहीं उधार दिवैया

चूल्हा देता रोज उलहना
गिरवी धर गए गहना कंगना
मर गया फसलों को लकवा
गिना चुना खेती का रकवा
पड़ा बेचना खेत मडैया
[भोपाल:०९.११.०९]