जब जब मैंने गीत सुनाया
सुनने वाले झूम उठे
नभ में श्याम घटायें छाईं
सुरभित मंद हवाएं आईं
माटी की सौंधी सौगाते
नभ-थल दशों दिशाएँ लाईं
नवलय नव गति तति नति से
छंद गीत के झूम उठे
जन गण मन के अंतस भोले
मिलजुलकर दरवाजा खोले
करुणा का सगा लहराया
आँसू छलके तनमन गीले
गीतों के अनुबंध सलोने
अतापता सब पूँछ उठे
खुली नींद तनमन से जागे
समय समाज सभी के आगे
माँ के आगे शीश झुकाया
गीतों के बुन डाले धागे
जब जब गीत अद्फ्ह्र पर आया
गीता के स्वर गूँज उठे
[भोपाल:१७.०१.१०]