बरगद ,नीम, आम की छाँव !
जेठ मॉस की तपी दुपहरी
आग उगलता हो जब सूरज
पंछी हर नर नारी की
बारा बजा रही हो सूरत
हांथ पाँव फूले छाता के तब सुस्ताना मेरे भैया
राह किनारे मेरा गाँव !
अपने घर का पता बता दूँ
द्वारे का नकशा समझा दूँ
चबूतरे पर छाँव घनेरी
शिमला नैनीताल दुपहरी
तन मन थक हो चकनाचूर तब सुस्ताना मेरे भैया
ले देना ,बस, मेरा नाँव !
अम्मा बापू घर न मिलेगें
हार खेत खलिहान ठिकाना
अय्या बाबा पके आम हैं
खुश होंगें उनसे बतियाना
मन में उठे सवाल पूछना तब सुस्ताना मेरे भैया
फिर चल देना अपने ठाँव !
[भोपाल:१६.०१ ०८]