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Saturday, 25 April 2009

आंखों में तिरता है गाँव

आंखों में तिरता है गाँव /सपनों में दिखता है गाँव

अलस्सुव्ह ही खाट छोड़ना
आलस की जंजीर तोड़ना
दुहना गैय्या भैस बकरिया
हार खेत से तार जोड़ना
हल कंधों पर ,चलते पाँव /हार खेत में दिखता गाँव

त्योहारों के रंग अनूठे
भेदभाव के दावे झूठे
दुःख में चीन भीत बन जता
सुख के राग फाग शुचि मीठे
वारी पर देता है दाँव / महा रास बन खिलता गाँव

अम्मा बापू दादा दादी
बसता उनमें काबा काशी
शहरी आवोहवा न पचती
लगता कूड़ा-करकट बासी
गड़ी नाल वो रुचता ठाँव /बातों में बतियाता गाँव
[भोपाल:२६.०४.०७]





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