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Friday, 24 April 2009

कैसे मनाऊँ

तुम्हीं बताओ कैसे मनाऊँ
भाई बहनों का त्यौहार

घर आँगन सब सूना सूना
इक्लौतापन उससे दूना
आसपास है बहन न कोई
जितना सुख दुःख उससे ऊना
किसको क्या सौपूं उपहार

माँ की गोदी सूनी कर दी
अनचाहे आंसू से भर दी
टुकुर टुकुर मै रहा देखता
दो दो बहनें छोड़ के चल दीं
आंसू में डूबा सब प्यार

मनमारे रो रही कलाई
रोके रुकती नहीं रुलाई
भाई बहन वे खुशी रहें
बांधें राखी खाय मिठाई
मेरी उन पर खुशियाँ न्यौछावर
[भोपाल:१६.०८.०८]

मेरी यादों में धुंधली रेखाएं मुझे बतातीं हैं कि मेरी एक छोटी बहन ननिहाल में चल बसी ,दूसरी छोटी बहन को मई हजर से बाहरकुंए के पास
अपनी गोदी में खिला रहा था कि अचानक ज़मीनपर गिर पड़ी और कुछ ही घंटों में चल बसी .आज भी लगता है कि बहन मेरी लाप्रबाही के कारणदुनिया से चल बसी .जब जब राखी का त्यौहार आता है मेरी आखें भर भर आती हैं यह लिखते हुए भी दिल भारी हो गया क्या मैहत्यारा हूँ?





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