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Friday, 24 April 2009

मेरा घर

छूमंतर हो जाय जहाँ पर तन मन बसी थकान
आसपास में बहीं मिलेगा मेरा घर दालान

आम नीम बरगद पीपल की
जहां घनेरी छाँव
जेठ दोपहरी थके पथिक के
रुकें जहाँ पर पाँव
करें बसेरा मिलजुल पंछी गायें गौरव गान

जहां बिसात बिछी सपनों की
लोरी की सौगात
गडी नाल पीढी दर पीढी
बता रही औकात
रहें कहीं भी इस दुनिया में पल पल खीचें ध्यान

माँ चूल्हे की सिकीं रोटियाँ
दादी फेरी छाछ
संबंधों के कोमल किसलय
हरी भरी ज्यों गाछ
खोज खोज कर हारे घर के मिले नहीं उपमान
[व्भोपाल:०२.०६ .०८]

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