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Saturday, 28 June 2008

मेरा घर

छूमंतर हो जाय जहां पर
तन-मन बसी थकान
आस -पास में वहीं मिलेगा
मेरा घर दालान
आम नीम बरगद पीपल की
जहां घनेरी छांव
जेठ दुपहरी थके पथिक के
थमें जहां पर पाँव
करें बसेरा मिलजुल पंछीं
गायें गौरव गान
जहां बिसात बिछी सपनों की
लोरी की सौगात
गडी नाल पीढी डर पीढी
बता रही औकात
रहें कहीं भी इस दुनिया में
पल पल खींचे ध्यान
माँ चूल्हे की सिंकी रोटियाँ
दादी फेरी छाछ
सम्बन्धों के कोमल किसलय
हरा भरा ज्यों गाछ
खोज खोज कर हारे घर के
मिलें नहीं उपमान
[भोपाल :०२.०६.०८ ]

3 comments:

Anonymous said...

aapne bilkul sahi likha hai. bhut khub. likhate rhe.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.

महेन said...

सच है…
"खोज खोज कर हारे घर के
मिलें नहीं उपमान"
पता नहीं आपने यह सच कैसे जाना… मैं तो जी कर जान रहा हूँ। आपका आशीर्वाद चाहिये।
शुभम।

Jaijairam anand said...

aapke protasaahn ke liye kotish: dhanyavaad
Dr jaijairam anand