चारों ओर उदासी छाई
ओठों पर हरदम है पहरा
घर आँगनअब सूना सूना
घर बाहर की तैयारी ने
माँगा तनमन धन का हिस्सा
जिसे सुनाऊं उसे लगेगा
सुचमुच तोता मैना किस्सा
कोर कसर रह जाय न कोई
पूरी हों अवशेष हसरतें
जोड़ रखा सब दूना दूना
जहाँ कहीं भी गया निमंत्रण
कोई छूछे हाथ न आया
दूर पास के सब रिश्तोंने
अपना अपना रंग जमाया
मिटें लकीरें सब अनाचाही
एक भाव था सबके मनमें
रिश्ता लगे न जूना जूना ।
शहनाई की अनुगूंजों में
हसीं खुशी की अनगिन कडियाँ
पंख लगा सब उडे पखेरू
सन्नाटा बुनती सब घडियाँ
सबने मिलजुल खुशियाँ बाटी
सपनें हुए अधूरे पूरे
सूनापन दुःख ऊना ऊना
[भोपाल:१६ २.08]
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