अम्मा ने हाथ धरा सिरपर
बापू ने चलना सिखलाया
घरसे बाहर पाव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कही भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुरु राट्बाया
कुरूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख दर्दों के शंयंत्रों ने
सुख पल पल का चुनचुन छीना
अम्मा ने भर लिया सिर पर
बापू ने धीरज बंधवाया
जाते जाते छोड़ गए वे
अजर अमर पद चिह्न अनुठे
महामंत्र गीता पुरान के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
( भोपाल 7 नवम्बर 2007 )
1 comment:
मेरा दिल अम्मा के दिल सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया
आदरणीय आप तो मेरे पिताजी से मात्र एक वर्ष छोटे हैं। इस आयु वर्ग में भी मॉं बाप के प्रति ये भावनायें जीवित रहती हैं जानकर परमानंद प्राप्त हुआ।
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