माँ वरदान मुझे दे दो
जो कुछ बोलूँ सच-सच बोलूँ
सोच समझ कर रूक-रूक बोलूँ
अंतस का दरवाजा खोलूँ
जनम जनम के कल्मष धोलूँ
माँ वरदान mu jhe de do
मेरे शब्द मन्त्र बन जाएँ
मेरे गीत ऋचा बन जाएँ
पंख लगाकर सब उड़ जाएँ
अधरों पर सब के बस जाएँ
माँ गुरुज्ञान मुझे दे दो
मैं न किसी से वैर निभाऊँ
सब जग की पीडा पी जाऊँ
पत्थर की छाती पर लिख दूँ
अब तक जो ना विरचित रच दूँ
माँ उपमान मुझे दे दो
चरणों मेँ निज शीश झुका दूँ
दिल मेँ बस बक्शीश बसा लूँ
गाते गाते जब मर जाऊँ
अमर गीत बनकर जग जाऊँ
माँ सुरतान मुझे दे दो
[भोपाल :०७ .11.20०७]
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