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Saturday, 24 November 2007

वरदान

माँ वरदान मुझे दे दो

जो कुछ बोलूँ सच-सच बोलूँ
सोच समझ कर रूक-रूक बोलूँ
अंतस का दरवाजा खोलूँ
जनम जनम के कल्मष धोलूँ
माँ वरदान mu jhe de do

मेरे शब्द मन्त्र बन जाएँ
मेरे गीत ऋचा बन जाएँ
पंख लगाकर सब उड़ जाएँ
अधरों पर सब के बस जाएँ
माँ गुरुज्ञान मुझे दे दो

मैं न किसी से वैर निभाऊँ
सब जग की पीडा पी जाऊँ
पत्थर की छाती पर लिख दूँ
अब तक जो ना विरचित रच दूँ
माँ उपमान मुझे दे दो

चरणों मेँ निज शीश झुका दूँ
दिल मेँ बस बक्शीश बसा लूँ
गाते गाते जब मर जाऊँ
अमर गीत बनकर जग जाऊँ
माँ सुरतान मुझे दे दो
[भोपाल :०७ .11.20०७]

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